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Pauranik Kathayen: कैसे हुई थी माता शबरी की प्रभु श्री राम से मुलाकात, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen रामायण के अनुसार भगवान राम की मुलाकात माता शबरी से वनवास के दौरान हुई थी। माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था। वे भील समुदाय से थीं। इनका विवाह भील कुमार से हुआ था। उनका हृदय बेहद ही निर्मल था।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 10:26 AM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 10:26 AM (IST)
Pauranik Kathayen: कैसे हुई थी माता शबरी की प्रभु श्री राम से मुलाकात, पढ़ें यह पौराणिक कथा
Pauranik Kathayen: कैसे हुई थी माता शबरी की प्रभु श्री राम से मुलाकात, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen: रामायण के अनुसार, भगवान राम की मुलाकात माता शबरी से वनवास के दौरान हुई थी। माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था। वे भील समुदाय से थीं। इनका विवाह भील कुमार से हुआ था। उनका हृदय बेहद ही निर्मल था। ऐसे में जब शबरी के विवाह पर पशुओं की बलि दी गई जो कि उनके यहां की परंपरा थी तो वे बेहद आहत हुईं। उन्होंने विवाह से एक दिन पहले घर छोड़ दिया। वे घर छोड़ दंडकारण्य वन में आकर रहने लगीं।

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इस वन में मातंग ऋषि तपस्या करना चाहते थे। वे उनकी सेवा करना चाहती थीं। लेकिन भील जाति की होने के कारण उन्हें लगता था कि उन्हें यह अवसर नहीं मिल पाएगा। ऐसे में सुबह जल्दी उठकर शबरी ऋषियों के उठने से पहले ही वो आश्रम और नदी तक जाने वाला मार्ग साफ कर देती थीं। वे रास्ते से कांटों को चुन लेती थीं और बालू बिछा देती थीं। इस बात का पता किसी को न चले इसलिए वो यह सब चुपचाप करती थीं।

लेकिन एक दिन एक ऋषि ने उन्हें ऐसा करते देख लिया। वे उनकी सेवा से बेहद प्रसन्न हुए। ऋषि मातंग का जब अंतिम समय आया तो उन्होंने शबरी को बुलाया तो उन्होंने कहा कि वो अपने आश्रम में ही प्रभु राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। ऋषि की बात सुन शबरी ने वैसा ही किया जैसा ऋषि ने कहा था। उन्होंने आश्रम में भगवान राम का इंतजार किया। वे रोज रास्ता साफ करती थीं। श्री राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती। वे हर बेर को चखती थीं और मीठे बेर को ही पात्र में रखती थीं। ऐसा करते करते काफी समय गुजर गया।

फिर एक दिन शबरी को ज्ञात हुआ कि दो सुंदर युवक उसे ढूंढ रहे हैं। उन्हें समझ आ गया कि वे और कोई नहीं बल्कि श्री राम हैं। जैसे ही उन्होंने श्री राम को उनके आश्रम की ओर आते देखा तो वे बेहद प्रसन्न हुईं। माता शबरी ने भगवान राम के चरणों को धोया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिया। इसके बाद वह जूठे बेर लेकर आई जो भगवान राम के लिए लाई थीं। श्री राम ने उनकी भक्ति को पूरा करने के लिए उन बेरों को खाया।  

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'  


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