उड़त अबीर-कुमकुम गुलाल रहयो सकल ब्रज छाये
'उड़त अबीर-कुमकुम-गुलाल, रहयो सकल ब्रज छाए'। जी हां, बरसाना में शनिवार को त्रिभुवन का आनंद बरसा। नभ में चहुंओर अबीर-गुलाल की घटा छा। श्रीजी मंदिर प्रांगण में प्रेम रस से सने लड्डुओं की मिठास भी बरसी। हर तरफ 'होली है-होली है, लगाओ गुलाल, रंग डालो' का शोर। अबीर-गुलाल और लड्डुओं के रूप में बर
मथुरा, जागरण संवाददाता। 'उड़त अबीर-कुमकुम-गुलाल, रहयो सकल ब्रज छाए'। जी हां, बरसाना में शनिवार को त्रिभुवन का आनंद बरसा। नभ में चहुंओर अबीर-गुलाल की घटा छा। श्रीजी मंदिर प्रांगण में प्रेम रस से सने लड्डुओं की मिठास भी बरसी। हर तरफ 'होली है-होली है, लगाओ गुलाल, रंग डालो' का शोर। अबीर-गुलाल और लड्डुओं के रूप में बरसाना में तीनों लोकों के आनंद की बरसात हो रही थी। बरसते लड्डुओं को लपकने के लिए फैली थी सबकी झोली। ढप-ढाल और मृदंग वादन के बीच होलाष्टक के इस पहली होली का ब्रज में आनंद लेने के लिए देवतागण भी लालायित थे। शनिवार को एक-दूसरे को लड्डू खाने-खिलाने के दौर के साथ शुरू हो गई लड्डुओं की होली। बरसाना का श्रीजी मंदिर होली की मस्ती और राधा रानी का प्रसाद पाने के लिए चहकता रहा। दुनिया भर से आए हजारों श्रद्धालु बरसाना के श्रीजी (लाड़ली जी) मंदिर में सुबह से ही पहुंचने शुरू हो गए थे। अपराह्न तक मंदिर के सामने का आंगन और छत पूरी तरह भर गई। पौने चार बजते-बजते फाग गायन और नृत्य का दौर शुरू हो गया। 'बिरज में खेलत फाग मुरारी, चहुंओर दिस रंग-गुलाल उड़त है। धार कनक पिचकारी, ललिता-बिशाखा रंग बनावै', 'श्याम रंग चित्त चढयौ है, रंग न दूजौ भावै', 'तेरे आएंगे आजु सखी, हरि खेलन को फागु रे' जैसे एक के बाद एक होली के गीत हुरियारे और हुरियारिन गा रहे थे। गीतों पर राधा रानी जी की सखियां और कान्हा के सखा थिरक रहे थे। पांच बजने से पहले गोस्वामी ने लड्डुओं से श्रीजी का भोग लगाया। फिर प्रसाद को हवा में उछालना शुरू किया। इसके साथ ही राधा रानी के दर्शन और प्रसाद के लड्डू लूटने के लिए होड़ लग गई। इसके बाद अबीर-गुलाल की होली हुई। बरसाने में लड्डू होली के बाद रविवार को नंदगांव के हुरयारे होली खेलने आएंगे।
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