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Holi 2019: हो सकती है बैकुंठ प्राप्ति और अग्नि देव से भी है रिश्ता जानें कुछ अनजानी बातें

Holi 2019 खुशी आैर सौहार्द का पर्व है ये बातें तो हम सभी जानते हैं पर क्या आप जानते हैं कि इससे जुड़ी धार्मिक महत्व की कुछ अनोखी बातें।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 10:37 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 09:26 AM (IST)
Holi 2019: हो सकती है बैकुंठ प्राप्ति और अग्नि देव से भी है रिश्ता जानें कुछ अनजानी बातें
Holi 2019: हो सकती है बैकुंठ प्राप्ति और अग्नि देव से भी है रिश्ता जानें कुछ अनजानी बातें

अन्न आैर अग्नि का पूजन

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वैदिक काल में होली को नर्इ फसल के आने का त्यौहार माना जाता था आैर इस दिन यज्ञ में अन्न का का हवन करके प्रसाद ग्रहण करने का चलन था। इसी के कारण इसे नवनेष्ठि पर्व कहते थे आैर ये यज्ञ नवनेष्ठि यज्ञ कहलाता था। यज्ञ में प्रयोग किए जाने वाले अन्न को होला कहते थे आैर इस वजह से ये त्यौहार होली कहलाया। कुछ शास्त्रों में इस दिन अग्नि देव की पूजा करने की बात कही गर्इ है। इसीलिए ये पर्व अग्नि को समर्पित माना जाता है। इसे नव संवत्सर का आरंभ, आैर बसंत आगमन का पर्व भी कहा जाता है।

रंग खेलने के साथ ये काम भी करें

पंडित दीपक पांडे ने बताया है कि होली के दिन आम्र मंजरी को चंदन के साथ मिला कर खायें आैर तब रंग खेलने घर से निकलें। इसी प्रकार मान्यता है कि फाल्गुन पूर्णिमा यानि होली पर झूला झूलते श्री कृष्ण का दर्शन करने से बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। सबसे खास बात ये है कि प्रात:काल उठकर भगवान का पूजन करें आैर श्री कृष्ण को अबीर गुलाल अर्पित करें। मुख्य रूप से होली भक्त प्रह्लाद से जुड़ा त्यौहार माना जाता है इसके अलावा भविष्य पुराण में कहा गया है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर ने महर्षि नारद से कह कर इस पर्व का आरंभ कराया था।

कब मनार्इ जायेगी होली

होलिका दहन के दूसरे दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रंगवाली होली के नाम से जाना जाता है। इस दिन गुलाल और पानी के रंगों से उत्सव मनाया जाता है। सद्भाव आैर मौज-मस्ती के चलते इसी दिन को होली का मुख्य दिन माना जाता है। रंगवाली होली को धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष ये पर्व 21 मार्च गुरुवार को मनाया जायेगा। हालांकि वास्तव में ये पर्व पूरे भारत में अलग अलग नामों से अलग अलग दिनों पर लगभग फाल्गुन के पूरे महीने चलता है। जैसे कभी फुलैरा दूज के नाम से, तो कभी लठ्ठमार होली के नाम से पूर्णिमा तिथि से पहले आैर रंग पंचमी के नाम से उसके कुछ दिन बाद।


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