हाय अल्लाह इतनी सारी खुशियां, क्या इतना प्यारा होता है ईद
ईद की खुशियों तक ले जाने वाला पवित्र महीना 'रमजान' । ख़ुदा का शुक्रिया हैं कि उसने पुरे महीने हमें रोज़े रखने की शक्ति दी। ईद का अर्थ ही 'खुशी का दिन' है।
रमजान का महीना खत्म होने को है। जामा मस्जिद के शाही इमाम के अनुसार, 7 जुलाई को ईद मनाई जाएगी। इस दिन मुस्लिम मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करते हैं। ईद के दिन परिवार वाले और दोस्त इकट्ठे होकर एक दूसरे से गले मिलते हैं। सब लोग साथ में मिलकर खाना खाते हैं।ईद-उल-फितर? मुस्लिम कलैंडर में ईद-उल-फितर का अपना महत्व है। इसका कनेक्शन किसी ऐतिहासिक घटना से नहीं है। यह वह दिन होता है, जिस दिन मुस्लिम अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं। अल्लाह का शुक्रिया विशेषकर रमजान के दिनों में उन्हें मजबूती देने के लिए अदा किया जाता है। रमजान का इस्लाम में बहुत बड़ा महत्व है।
रमजान के एक महीने के दौरान सूरज उगने से लेकर डूबने तक उपवास रखा जाता है।
कैसे मनाई जाती है ईद ?
कैलेंडर के मुताबिक एक वर्ष से दूसरे वर्ष में प्रवेश करने पर यह त्योहार मनाया जाता है। ईद नए चांद के दिखने पर मनाई जाती है। ईद के दिन लोग मस्जिदों में इकट्ठे होकर नमाज अदा करते हैं। इस दिन नए कपड़े पहने जाते हैं। नए-नए पकवान बनाए जाते है। ईद के दिन गिफ्ट और कार्ड्स भी एक दूसरे को दिए जाते हैं। ईद खुशी के तौर पर मनाई जाती है। यह वह खुशी होती है जो एक अहम काम पूरा करने पर मिलती है।
जब हम ईद या रमज़ान की बात करते हैं, तब सबसे पहले हमारे ज़ेहन में शिराकोरमा जिसे सेवइयाँ भी कहते हैं और इस तरह के कई लज़ीज़ पकवानों की याद आते हैं। रमज़ान के पुरे महीने में हर तरफ इफ्तारी के लिए बनने वाली तरह-तरह की डिशेस मुह में पानी लाती हैं। पर ईद और रमज़ान का ये महिना खाने की इन स्वादिष्ट चीज़ों से कहीं ज्यादा हैं। रमजान के 30वें रोज़े के बाद चाँद देख कर ईद मनाई जाती हैं। इस साल भी इसी तरह 7 जुलाई को ईद मनायी जानी हैं।
क्यों ईद चाँद दिखने के बाद अगले दिन मनाई जाती हैं
पर क्या आप जानते हैं कि ईद और चाँद का क्या कनेक्शन हैं? ईद को ईद-उल-फ़ितर भी कहा जाता हैं जो इस्लामिक कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती हैं। इस्लामिक कैलंडर के बाकि महीनो की तरह यह महिना भी “नया चाँद” देख कर शुरू होता हैं। ईद मनाने का मकसद वैसे तो पूरी दुनिया में भाईचारा फैलाने का हैं पर इस के पीछे की कहानी ह्रदयविदारक हैं।
जंग-ए-बद्र की लड़ाई जो सन 624 में नए बने मुस्लिम गुट और कुरैश कबीले के बीच हुई थी। जिसका उद्देश्य पुरानी ख़ानदानी रंजिशों का बदला लेना था। इस लड़ाई में पैगम्बर मुहम्मद ने मुस्लिमो का नेतृतव किया था।जिसमे इस्लाम और मुस्लिमों की जीत हुई थी। इस लड़ाई के बाद इस्लाम को मानने वाले लोगों ने पैगम्बर मुहम्मद को ईश्वर का दूत मानने लगे और उनके साथ मक्का की ओर जा कर रहने लगे। इसी युद्ध के बाद 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फितर मनाया गया था। इस्लामिक कैलंडर में दो ईद मनायी जाती हैं। दूसरी ईद जो ईद-उल-जुहा या बकरीद के नाम से भी जानी जाती हैं।
ईद-उल-फितर का यह त्यौहार रमजान का चाँद डूबने और ईद का चाँद नज़र आने पर नए महीने की पहली तारीख को मनाया जाता हैं। रमज़ान के पुरे महीने रोज़े रखने के बाद इसके ख़त्म होने की ख़ुशी में ईद के दिन कई तरह की खाने की चीज़े बनाई जाती हैं। सुबह उठा कर नमाज़ अदा की जाती हैं और ख़ुदा का शुक्रिया अदा किया जाता हैं कि उसने पुरे महीने हमें रोज़े रखने की शक्ति दी। नए कपड़े लिए जाते हैं और अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल कर उन्हें तोहफ़े दिए जाते हैं और पुराने झगड़े और मन-मुटावों को भी इसी दिन ख़त्म कर एक नयी शुरुआत की जाती हैं।
इस दिन मज़्जिद जा कर दुआ की जाती हैं और इस्लाम मानने वाले का फ़र्ज़ होता हैं कि अपनी हैसियत के हिसाब से ज़रूरत मंदों को दान करे। इस दान को इस्लाम में ज़कात उल-फितर भी कहा जाता हैं। आने वाली ईद में भी हम सभी यही उम्मीद करते हैं ये ईद ख़ुशहाली और भाईचारा लायें। हर त्योहार मनाने के पीछे कोई वजह होती है। इसी तरह मुसलमान रमजान के बाद ही ईद का त्योहार मनाते हैं।
क्यों मनाते हैं रमजान?
इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है। रमजान के महीने में कुरान नाजिल हुआ था।माना जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है।
मुसलमानों के लिए रमजान महीने की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इन्हीं दिनों पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जरिए अल्लाह की अहम किताब ‘कुरान शरीफ’ (नाजिल) जमीन पर उतरी थी। इसलिए मुसलमान ज्यादातर वक्त इबादत-तिलावत (नमाज पढ़ना और कुरान पढ़ने) में गुजारते हैं। मुसलमान रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं।
कैसे रखते हैं रोजा ?
रोजा रखने के लिए सवेरे उठकर खाया जाता है इसे सेहरी कहते हैं. सेहरी के बाद से सूरज ढलने तक भूखे-प्यासे रहते हैं. सूरज ढलने से पहले कुछ खाने या पीने से रोजा टूट जाता है. रोजे के दौरान खाने-पीने के साथ गुस्सा करने और किसी का बुरा चाहने की भी मनाही है।
कैसे खोलते हैं रोजा ?
शाम को सूरज ढलने पर आमतौर पर खजूर खाकर या पानी पीकर रोजा खोलते हैं। रोजा खोलने को इफ्तार कहते हैं। इफ्तार के वक्त सच्चे मन से जो दुआ मांगी जाती है वो कूबुल होती है।
रोजे से छूट किसे ?
बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफिरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोजे से छूट है. जो लोग रोजा नहीं रखते उन्हें रोजेदार के सामने खाने से मनाही है।
रमजान और ईद
ईद के चांद के साथ रमजान का अंत होता है। रमजान की खुशी में ईद मनाई जाती है। ईद का अर्थ ही 'खुशी का दिन' है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-फित्र त्योहार अलग ही खुशी लेकर आता है। ईद के चांद के दर्शन के साथ हर तरफ रौनक हो जाती है।