यहां है भगवान जगन्नाथ जी का घर
गुंदेचा मंदिर को ब्रह्मलोक एवं जनकपुरी के नाम से संबोधित करते हैं। यह पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के नजदीक स्थित है। गुंदेचा मंदिर को ब्रह्मलोक इसलिए कि यहां देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था। रथयात्रा के दौरान
गुंदेचा मंदिर को ब्रह्मलोक एवं जनकपुरी के नाम से संबोधित करते हैं। यह पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के नजदीक स्थित है। गुंदेचा मंदिर को ब्रह्मलोक इसलिए कि यहां देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ गुंदेचा मंदिर में कुछ समय बिताते हैं। भगवान के यहां आने पर भव्य धार्मिक आयोजन होता है।
गुंदेचा मंदिर से बाहर जनकपुरी में भगवान जगन्नाथ विन्दुतीर्थ के तट पर सात दिन तक निवास करते हैं। मान्यता है कि प्राचीन काल में उन्होंने राजा इंद्रद्युम को यह वर दिया था कि मैं तुम्हारे तीर्थ के किनारे प्रतिवर्ष निवास करुंगा। मेरे वहां स्थित रहने पर सभी तीर्थ उसमें निवास करेंगे। उस तीर्थ में विधिपूर्वक स्नान करके, जो लोग सात दिनों तक गुंदेचा मंडप में विराजमान में स्वयं, बलराम व सुभद्रा का दर्शन करेंगे और मेरी कृपा प्राप्त कर सकेंगे।
गुंदेचा मंडप से रथ पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर आते हुए श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी के जो दर्शन करता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार जो प्रतिदिन सुबह उठकर इस प्रसंग का पाठ करता है या सुनता है वह भी भगवान विष्णु की कृपा से गुंदेचा महोत्सव के फलस्वरूप वैकुण्ठधाम में स्थान पाता है।
यहां है भगवान जगन्नाथ जी का घर
घर मंदिर की तरह होता है, भगवान जगन्नाथ जिस घर में रहते हैं उसे भक्त मंदिर कहते हैं। भगवान जगन्नाथ का पुरी, ओडिशा स्थित मंदिर 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है।
कलिंग शैली की स्थापत्यकला और शिल्प के प्रयोग से बनाया गया यह मंदिर भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है। यहां मुख्य मंदिर वक्र रेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।
मंदिर के भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिका रूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं।