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Haridwar Kumbh 2021: कैसे तय होती है कुंभ मेले की तिथि? जानें इसके गणना की विधि

Haridwar Kumbh 2021 आस्था का सबसे बड़ा मेला कुंभ इस वर्ष हरिद्वार में 27 फरवरी को लगने वाली है। कुंभ मेला कब लगेगा? किस स्थान पर लगेगा? इसका ग्रहों से क्या संबंध है? यह तय कैसे होता है? जागरण अध्यात्म में आज हम इसके बारे में जानेंगे।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Thu, 18 Feb 2021 01:00 PM (IST)Updated: Thu, 18 Feb 2021 01:00 PM (IST)
Haridwar Kumbh 2021: कैसे तय होती है कुंभ मेले की तिथि? जानें इसके गणना की विधि
Haridwar Kumbh 2021: कैसे तय होती है कुंभ मेले की तिथि? जानें इसके गणना की विधि

Haridwar Kumbh 2021: आस्था का सबसे बड़ा मेला कुंभ इस वर्ष हरिद्वार में 27 फरवरी को लगने वाली है। इस दिन माघ पूर्णिमा से हरिद्वार कुंभ का आगाज होना है। इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण यह मेला एक माह ही चलेगा। वैसे कुंभ मेले के 48 दिनों तक चलने की परंपरा है। कुंभ मेला कब लगेगा? किस स्थान पर लगेगा? इसका ग्रहों से क्या संबंध है? यह तय कैसे होता है? जागरण अध्यात्म में आज हम इसके बारे में जानेंगे।

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किस वर्ष किस स्थान पर कुंभ मेला लगेगा, इसका निर्धारण राशियों पर आधारित होता है। कुंभ मेले की तिथि और स्थान को तय करने में बृहस्पति और सूर्य ग्रह की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बृहस्पति और सूर्य के राशियों में प्रवेश करने से ही मेले का स्थान और तिथि निर्धारित होता है।

कुंभ मेला: राशि और स्थान का संबंध

1. जिस वर्ष में बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस वर्ष कुंभ मेला देव नगरी हरिद्वार में आयोजित होता है। यह हिन्दी कैलेंडर के माघ मास में पड़ता है।

2. जिस साल सूर्य देव मकर राशि में और बृहस्पति देव मेष या वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं, उस साल कुंभ मेला प्रयागराज में लगता है। यह हिन्दू कैलेंडर के प्रथम मास चैत्र में लगता है।

3. जिस वर्ष में सूर्य देव और बृहस्पति एक ही राशि सिंह में प्रवेश करते हैं, उस वर्ष कुंभ मेला महाराष्ट्र के नासिक में आयोजित किया जाता है। नासिक कुंभ भाद्रपद मास में लगता है।

4. जिस साल बृहस्पति देव सिंह राशि में और सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो यह कुंभ मेला उज्जैन में लगता है। इसे सिंहस्थ कुंभ भी कहा जाता है क्योंकि इसका संबंध सिंह राशि से होता है। सिंहस्थ कुंभ वैशाख मास में लगता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सागर मंथन के समय प्राप्त हुए अमृत कलश को सुरक्षित करने में सूर्य, बृहस्पति, शनि और चंद्र ग्रहों का महत्वपूर्ण योगदान था। इस वजह से कुंभ की तिथि निर्धारण में इन ग्रहों की भी विशेष भूमिका होती है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '


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