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Muharram 2019: मुहर्रम के जुलूस में क्यों कहा जाता है 'या हुसैन, हम न हुए'

Why Shia Community Hail Hussain During Muharram मोहर्रम में जो मरसिया पढ़ा जाता है उसमें इमाम हुसैन की मौत का बहुत विस्तार से वर्णन किया जाता है। लोगों की आंखें नम होती हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 08:04 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 10:58 AM (IST)
Muharram 2019: मुहर्रम के जुलूस में क्यों कहा जाता है 'या हुसैन, हम न हुए'
Muharram 2019: मुहर्रम के जुलूस में क्यों कहा जाता है 'या हुसैन, हम न हुए'

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Why Shia Community Hail Hussain During Muharram: इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल का पहला महीना मोहर्रम होता है। इसे 'ग़म का महीना' भी कहा जाता है। इस दिन मुसलमान खासकर शिया समुदाय मातम करता है और जुलूस निकालता है। मोहर्रम के 9वें और 10वें दिन रोज़ा भी रखा जाता है। 

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इसलिए किया जाता है मातम 
पैग़ंबर-ए-इस्‍लाम हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन को इसी मोहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। कर्बला की जंग हज़रत इमाम हुसैन और बादशाह यज़ीद की सेना के बीच हुई थी। मोहर्रम में मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं। हज़रत इमाम हुसैन का मक़बरा इराक़ के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां ये जंग हुई थी। ये जगह इराक़ की राजधानी बग़दाद से क़रीब 120 किलोमीटर दूर है और बेहद सम्मानित स्थान है।

कर्बला की जंग
मोहर्रम महीने का 10वां दिन सबसे ख़ास माना जाता है। मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हज़रत इमाम हुसैन ने अपने प्राणों का त्‍याग दिया था। इसे आशूरा भी कहा जाता है। इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताज़िया निकालते हैं। भारत के कई शहरों में मोहर्रम में शिया मुसलमान मातम मनाते हैं लेकिन लखनऊ इसका मुख्य केंद्र रहता है। यहां के नवाबों ने ही शहर के प्रसिद्ध इमामबाड़ों का निर्माण करवाया था।

'या हुसैन, हम न हुए'
मोहर्रम में जो मरसिया पढ़ा जाता है उसमें इमाम हुसैन की मौत का बहुत विस्तार से वर्णन किया जाता है। लोगों की आंखें नम होती हैं। काले बुर्के पहने खड़ीं महिलाएं छाती पीट-पीटकर रो रही होती हैं और मर्द ख़ुद को पीट-पीटकर ख़ून में लतपत हो जाते हैं।

वहीं, ताज़िये से एक ही आवाज़ सुनाई देती है- "या, हुसैन, हम ना हुए"। इसका मतलब होता है, "हमें दुख है इमाम हुसैन साहब कि कर्बला की जंग में हम आपके लिए जान देने को मौजूद न थे।" 


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