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प्रकृति और जीवन के प्राणतत्व हनुमान

आम जन में एक व्यक्ति और एक भक्त के तौर पर देखे जाने वाले हनुमान को पराक्रम, उत्साह, मति, शील, माधुर्य और नीति के साथ साथ गाम्भीर्य चातुर्य और धैर्य के प्रतिमान स्थापित करते देखा गया है परंतु इसकी वैज्ञानिकता की ओर ध्यान न देने के कारण हनुमान की सार्थकता

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Fri, 03 Apr 2015 06:02 PM (IST)Updated: Fri, 03 Apr 2015 06:24 PM (IST)
प्रकृति और जीवन के प्राणतत्व हनुमान

आम जन में एक व्यक्ति और एक भक्त के तौर पर देखे जाने वाले हनुमान को पराक्रम, उत्साह, मति, शील, माधुर्य और नीति के साथ साथ गाम्भीर्य चातुर्य और धैर्य के प्रतिमान स्थापित करते देखा गया है परंतु इसकी वैज्ञानिकता की ओर ध्यान न देने के कारण हनुमान की सार्थकता सिर्फ पुराणों और भक्ति साहित्य तक सिमट कर रह गई है।
हनुमान को पुराणों से लेकर आज तक अमर माना गया है। अनेक उपमाओं के साथ कहा गया कि इस विशाल ब्रह्मांड में हनुमान जैसा कोई नहीं है। इन्हीं उपमाओं में हनुमान के लिए 'वायुपुत्र' का भी प्रयोग होता है। वायुपुत्र कहे जाने के पीछे की दार्शनिक प्रतीकात्मक भूमिका जानना आवश्यक है। वायु, गति, पराक्रम, विद्या, भक्ति और प्राण शब्द का पर्याय है। वायु के बिना या वायु की वृद्धि से प्राणियों का जीवन संभव नहीं है। यहां तक कि योग की आधार भूमिका के रूप में किसी भी साधक और योगी के लिए तो प्राण वायु का नियमन है। चूंकि पवन सभी का प्राणदाता जनक है और इसी प्राणतत्व के कारण हनुमान पवनपुत्र कहलाते हैं, तो प्राणवायु से जीवन का आधार जुड़ा है। सृष्टि में जब तक वायु है, पवन है तब तक प्राण हैं और जब तक प्राण हैं हनुमान भी हैं। हनुमान के अमरत्व का सीधा-सीधा संबंध प्राणवायु से है, अर्थात् हर प्राणी जो सांस ले रहा है वह हनुमान को अपनी हर सांस में जी रहा है।
इसीलिए पौराणिक ग्रंथ हों या भक्ति साहित्य अथवा लोकाचार में उनकी अमरतापूर्ण उपस्थिति की बात हो, हनुमान को अनगढ़ शिव का रूप भी इसीलिए बताया गया है क्योंकि वह प्राण और उसकी शक्ति से जुड़े हैं।
पौराणिक क्रम में तेरहवां स्थान रखने वाले ' स्कंद पुराण' के महेश्वर खंड में स्वयं शिव ने हनुमान के रुद्र रूप का वर्णन किया है -

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योवै चैकादशो रुद्रो हनुमान स महाकपि: ।
अवतीर्ण : सहायार्थ विष्णोरमित तेजस:।।


ऋग्वेद के भी 10.64.8 मंत्र की व्याख्या में नीलकंठ शिव ने हनुमान को रुद्रों में ग्यारहवाँ रुद्र बताया है जो सभी रुद्रों में अंतिम है। शिव पुराण की रुद्र संहिता में हनुमान के परब्रह्म स्वरूप की संपूर्णता और रुद्र से हनुमान की एकाकारता का वर्णन मिलता है। 'स्कंद पुराण' के अनुसार हनुमान से बढ़कर जगत में कोई नहीं है। एक और उद्धरण मिलता है कि याज्ञवल्क्य ने ऋषि भारद्वाज को बोध प्रदान करते हुए कहा है कि- "परमात्मा नारायण ही श्री हनुमान हैं।"
'वायु पुराण' के पूर्वार्द्ध में भगवान महादेव के हनुमान रूप में अवतार लेने का उल्लेख है।

साहित्यिक दृष्टि से हनुमान को गोस्वामी तुलसीदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'हनुमान बाहुक' में तथा 'विनय पत्रिका' के अनेक पदों में शंकर रूप मानकर 'देवमणि' रुद्रावतार महादेव, वामदेव, कालाग्रि आदि नामों से संबोधित तो किया परंतु भक्ति रस में डूबे होने के कारण हनुमान के परब्रह्म होने का सत्य मात्र एक बलशाली वानर , रामभक्त व अमर देव होने तक ही सिमट गया।
यह सत्य है कि पवनपुत्र हनुमान की हमारी प्रत्येक श्वास में उपस्थिति है जिसको परब्रह्म के अतिरिक्त और किस रूप में देखा जा सकता है भला। प्राण-तत्व की उपस्थिति के बिना क्या हम जीवन की कल्पना कर सकते हैं। यह तो प्रकृति के किसी भी रूप व काल में जीवन के लिए अनिवार्य रही है।
हनुमान जयंती पर एक बार फिर आज जब धार्मिक प्रतीकों देवी देवताओं के अस्तित्व को धार्मिक दृष्टिकोण के साथ साथ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा परखा जा रहा है, नये नये शोध हो रहे हैं, तब ऐसे में हनुमान की शक्तियों, वे परब्रह्म क्यों कहलाये हैं और उनके आचरण को हम आज अपने जीवन में किस तरह नियम व संयम से उतार सकते हैं, यह जानने की आवश्यकता है।

[अलकनंदा सिंह]

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