ईश्वर एक है, राम और रहीम भी एक ही हैं
निराकार होते हुए भी वे घट-घट में रमे हुए हैं, जिसे खोजने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है।
ईश्वर एक है। राम और रहीम भी एक ही हैं। इसी बात को मानने और भक्तों के बीच प्रचार करने वाले गुरु नानक के गाए भजनों में राम का खूब नाम लिया गया है। अपनी जीविका मेहनत से कमाने और बुराई का विरोध करने के राम के संदेश को ही वास्तव में उन्होंने प्रसारित किया। राम की तरह वे कहते हैं कि किसी भी तरह के लोभ को त्यागकर परिश्रम और न्यायोचित तरीके से धन अर्जन करना चाहिए। जिस समय गुरु नानक देव का पंजाब के
तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में जन्म हुआ, उस समय समाज दुविधा, लोभ, अज्ञानता, अंधविश्वास, कर्मकांड और पाखंड के दलदल में फंसा हुआ था। उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को बड़े ही धूमधाम से प्रकाश उत्सव और गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं।
बचपन से ही गुरु नानक देव ने इन बुराइयों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया। बालपन में जब उन्हें परंपरा
के अनुसार जनेऊ पहनाया जाने लगा, तो उन्होंने बड़ी गूढ़ बातें कहीं। उन्होंने कहा कि यदि दया कपास हो, संतोष सूत हो, संयम गांठ हो और सत्य उस जनेऊ की पूरन हो, तो यही जीव के लिए आध्यात्मिक जनेऊ है। इस प्रकार का जनेऊ न तो टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न यह जलता है और न खोता ही है। तरुणावस्था में जब पिता कल्याण दास मेहता ने बीस रुपये देकर उनसे व्यापार कराना चाहा, तो उन रुपयों से गुरु साहब ने जरूरतमंद साधु-संतों की मदद कर दी। तभी से उन्होंने मानवता को माया के जाल से निकालने का काम आरंभ कर दिया था। परिवार के दबाव में उन्होंने कुछ दिन तक सुल्तानपुर लोधी में नवाब के मोदीखाने में अनाज बांटने का काम तो किया, लेकिन उनका मन ईश्वर में ही रमा रहा। वे मानते थे कि ईश्वर संपूर्ण संसार, यहां तक कि प्रत्येक जीव में विराजमान हैं।
गुरु नानक के बारे में एक किंवदंती है कि एक दिन वे वे नदी में नित्य की भांति स्नान करने गए, तो नदी में ही
अंतर्धान हो गए। तीन दिन बाद जब वे प्रकट हुए, तो स्वयं को पूरी तरह ईश्वर सेवा और लोगों के बीच अच्छे
विचारों के प्रचार-प्रसार में लगा दिया। इसके बाद अपने पुराने परिचित और श्रद्धालु भाई मरदाना जी को साथ
लेकर वे संसार को राह दिखाने के लिए निकल पड़े। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण की तरह ही वे संदेश
देते हैं, 'ईश्वर एक है, जो निराकार है। वही सृष्टि का सृजनकर्ता है। ईश्वर ही सभी के पिता हैं, इसलिए सभी
के साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। साथ ही, ईश्वर काल से परे है। जन्म और मृत्यु के चक्र से परे है।Ó गीता में
श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा को कोई भी शस्त्र मार नहीं सकता है, इसी तरह गुरु नानक कहते हैं, 'ईश्वर ही
एकमात्र अविनाशी हैं। शेष जो कुछ भी संसार में दिख रहा है, वह काल के अधीन है। उन सबका नाश अवश्यंभावी है।Ó उनके अनुसार, सारी सृष्टि एक परमात्मा के हुक्म से ही चल रही है, जो सर्वशक्तिमान हैं। निराकार होते हुए भी वे घट-घट में रमे हुए हैं, जिसे खोजने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है।
परमात्मा को मन में ही पाया जा सकता है। गुरु जी की वाणी से समाज की सदियों से चली आ रही कई भ्रांतियां
टूट गईं और नई आशा का संचार हुआ। गुरु नानक 25-26 वर्षों में पूरी की गई धर्म यात्राओं में भूभाग के हर
कोने तक गए और लगभग सभी हिंदू, मुस्लिम प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों पर जाकर अपनी बात रखी। गुरु नानक ने अपना संदेश उत्कृष्ट काव्य शैली में दिया, जो विस्मित कर देने वाला है। गुरु नानक ने मानव समानता और भाईचारे की बात कही तथा अनाचार और पाखंड का डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि कभी भी किसी का हक मत छीनें और ईमानदारी से कमाए गए धन से जरूरतमंदों की मदद करें। उन्होंने अपनी बात 'गुरु साहिबÓ में पूरी निर्भीकता से कही। बाबर के अत्याचार को देखकर उसे 'पाप की बारात का दूल्हाÓ कहने का दुस्साहस भी उन्होंने किया। गुरु जी ने जमींदार मलिक भागो की दावत ठुकरा दी, क्योंकि वह निर्बल लोगों का शोषण कर धन एकत्र कर रहा था। उन्होंने धर्म जगत के पाखंड और आडंबरों पर कठोर प्रहार किए और मन की निर्मलता व आचरण की
शुद्धता पर बल दिया। अपने जीवन के अंतिम अठारह वर्ष गुरु नानक साहब ने एक सद्गृहस्थ की तरह करतारपुर साहिब में बिताए और वहां वे लोगों को परमात्मा से जुडऩे की प्रेरणा देते रहे। उनकी वाणी हर जीव में ईश्वर का रूप देखने की अनूठी प्रेरणा देने वाली है, जो विश्वबंधुत्व और शांति का ठोस आधार है।