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भगवान को काढ़े की पहली घूंट

भक्त और भगवान के रिश्ते की अबूझ पहेली ही है यह कि जिसमें भक्तों का मन उसमें ही जगन्नाथ जी मगन। इन्हीं भावों को सहेजता व संजोता है उत्सवों की रसिया काशी में नए साल का पहला पर्वोत्सव रथयात्रा मेला। इसके आधार अनुष्ठानों व लोकाचारी विधानों के क्रम में द्वारका

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2015 10:30 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2015 10:40 AM (IST)
भगवान को काढ़े की पहली घूंट

वाराणसी भक्त और भगवान के रिश्ते की अबूझ पहेली ही है यह कि जिसमें भक्तों का मन उसमें ही जगन्नाथ जी मगन। इन्हीं भावों को सहेजता व संजोता है उत्सवों की रसिया काशी में नए साल का पहला पर्वोत्सव रथयात्रा मेला। इसके आधार अनुष्ठानों व लोकाचारी विधानों के क्रम में द्वारका और पुरी पुराधिपति भगवान जगन्नाथ भक्तों के हाथों अतिशय स्नान से बीमार पड़े। अस्वस्थता इस कदर की 45 दिन के पूर्ण विश्राम पर और इलाज के विधि विधान में भी भक्तों का मान रखते हुए दूसरे दिन बुधवार को काढ़ा का भोग लिया। मक्खन मलाई और 56 प्रकार के भोग एक किनारे तो घंटा घडिय़ाल की गूंज भी ठप ताकि प्रभु के विश्राम में कोई व्यवधान न पड़े।

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अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर के शयन कक्ष में सुबह की आरती भी इतने चुपके से मानों आहट से नींद न उचट जाए। शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए दोपहर बाद तुलसी दल से सजे वनौषधियों के अर्क वाला दिव्य काढ़ा बनाया गया। इसका ही पुरी पुराधिपति, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा को भोग लगाया गया। यह सिलसिला इस बार मलमास के कारण 15 दिन की बजाय 45 दिनों तक विश्रामपर्यंत जारी रहेगा। स्वास्थ्य लाभ होने पर 16 जुलाई को प्रथम पथ्य के रूप में प्रभु परवल का जूस लेंगे। मनफेर के लिए ससुराल जाएंगे और तीन दिनी रथयात्रा महोत्सव शुरू होगा।
श्रद्धा के दीप जलाती कतार
नाथोंं के नाथ प्रभु जगन्नाथ और बहन सुभद्रा सहित महाबली बलभद्र को जो काढ़ा चंगा कर दे उस काढ़े का प्रसाद पाने का मोह भला भक्त क्योंं संवरण कर पाएं। औषधि जिसकी तासीर के साथ खुद प्रभु की कृपा जुड़ी हो आरोग्य के लिए उसे क्यों न आजमाएं। आस्था-विश्वास का यही भाव अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में लंबी कतार के रूप में नजर आया। चरम भौतिकता के दौर में श्रद्धा की महत्ता के दीप भी जलाया। भगवान के अस्वस्थता के कारण पूर्ण विश्राम पर जाने और दर्शन न मिल पाने की सूचना के बाद भी उनकी कुशल-क्षेम लेने भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। इसमें स्थानीयजन तो थे ही विभिन्न जिलों, प्रांतों तक से श्रद्धालु आए। खुद काढ़े का प्रसाद पाया और परिवारीजनों के स्वास्थ्य कामना से इसे सहेज भी लिया। आलोक शापुरी, शैलेश शापुरी, संजय शापुरी, दीपक शापुरी समेत शापुरी परिवार की निगरानी में अनुष्ठान किए गए।
बिना छौंक का काढ़ा - भगवान का काढ़ा गंगा जल में बनाया गया। काली मिर्च, छोटी-बड़ी इलायची, लौंग, जायफर, चंदन शर्करा को बारीक पीस कर गंगाजल व गुलाबजल में मिलाया गया। तुलसीदल से इसे सजाया भी गया।
क्या कहता है विज्ञान - वास्तव में सनातन परंपरा में पर्वोत्सव मौसम के मुताबिक ही रचे गए। इसी प्रकार रथयात्रा के आधार पर अनुष्ठान भी धर्म और विज्ञान का अनूठा मेल है। गर्मी-बरसात के संधि काल में कफ जनित रोगों की अधिकता होती है। ऐसे में इसे रोगों से बचाव का अनुकूलन अनुष्ठान माना जाता है।


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