गया और पिंडवेदियां
पूरे विश्व में गया ही एक ऐसा स्थान है, जहां सात गोत्रों में 121 पीढि़यों का पिंडदान और तर्पण होता है। यहां पिंडदान माता, पिता, पितामह, प्रपितामह, प्रमाता, वृद्ध प्रमाता, प्रमातामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, पितृकुल, मातृकुल, श्वसुर कुल, गुरुकुल, सेवक के नाम से किया जाता है। यहां विभिन्न वेदियों पर पूरे 15 दिनों तक पिंडदान करना श्रेय
पूरे विश्व में गया ही एक ऐसा स्थान है, जहां सात गोत्रों में 121 पीढि़यों का पिंडदान और तर्पण होता है। यहां पिंडदान माता, पिता, पितामह, प्रपितामह, प्रमाता, वृद्ध प्रमाता, प्रमातामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, पितृकुल, मातृकुल, श्वसुर कुल, गुरुकुल, सेवक के नाम से किया जाता है।
यहां विभिन्न वेदियों पर पूरे 15 दिनों तक पिंडदान करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन यहां एक-दिवसीय, त्रि-दिवसीय और सप्त-दिवसीय पिंडदान की भी मान्यता है।
गरूड़ पुराण में लिखा है -
गृहाच्चलितमात्रस्य गयायां गमनं प्रति स्वर्गारोहणसोपानं पितृणां तु पदे-पदे। (गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं)। गया को विष्णु का नगर माना गया है। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। वेदों के अनुसार गया भारत के सात प्रमुख पुरियों में अपना एक विशेष स्थान रखता है।
प्राचीन काल में गया में 365 पिंडवेदियां थीं, जिनमें से वर्तमान में मात्र 54 वेदियों पर पिंडदान का अवसर सुलभ होता है। इनमें से भी कुछेक अति महत्वपूर्ण हैं, जहां पिंडदान के लिए श्रद्धालु कतार लगाए रहते हैं।