Ganeshotsav 2020: गणेश जी के सातवें अवतार हैं विघ्नराज, जानें क्यों हुए थे अवतरित
Ganeshotsav 2020 प्रथम पूज्नीय श्री गणेश के सातवें अवतार हैं विघ्नराज। इन्होंने मम नाम के दैत्य को पराजित करने के लिए अवतार लिया था।
Ganeshotsav 2020: प्रथम पूज्नीय श्री गणेश के सातवें अवतार हैं विघ्नराज। इन्होंने मम नाम के दैत्य को पराजित करने के लिए अवतार लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बार माता पार्वती अपनी सखियों के साथ बातें कर रही थीं। बात करते-करते वो हंस पड़ी। उनके हास्य से एक पुरुष प्रकट हुआ। इसका नाम पार्वती जी ने मम रखा। माता पार्वती ने ही मम को गणेश जी के षडक्षर मंत्र का ज्ञान दिया। इसके बाद मम ने गणेश जी की उपासना की। उसने श्री गणेश की सहस्त्रों वर्षों तक कठोर तपस्या की। श्री गणेश ने प्रसन्न होकर मम को दर्शन दिए और मम ने पूरे ब्राह्माण्डय का राज्य और युद्ध में आने वाले सभी विघ्नों से मुक्त रहने का वरदान मांगा। गणेश जी ने मम को निर्विघ्न विजय का अजीब वरदान दिया।
इस वरदान को पाने के बाद मम ने दैत्यों के साथ मित्रता कर ली। मम के असुर मित्र शम्बर ने अपनी पुत्री से उसका विवाह करा दिया और उसे अपना राज्य सौंप दिया। साथ ही उसे दैत्यों का राजा घोषित कर दिया। इस तरह वह मामासुर बन गया। इस मैत्री के चलते मम के अत्याचार बढ़ गए और उसने तीनों लोकों को कष्ट में डाल दिया। मामासुर ने पृथ्वी, पाताल, शिवलोक, विष्णुलोक और देवलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता और ऋषि-मुनि अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए श्री गणेश की शरण में पहुंचे। उनकी प्रार्थना सुन गणेश जी विघ्नराज अवतार में प्रकट हुए।
विघ्नराज ने देवर्षि नारद को अपना दूत बनाकर मामासुर के पास भेजा। उन्होंने मामासुर को कहलवाया कि अगर वो अत्याचार और अधर्म का मार्ग छोड़ उनकी शरण में नहीं आया तो उसका नाश निश्चित है। यह सुनकर शुक्राचार्य ने भी उस समझाया। उन्होंने कहा कि वो विघ्नराज की शरण में चला जाए। वो उनसे वैर ना करे। लेकिन उसने शुक्राचार्य की एक बात न मानी। वो विघ्नराज से युद्घ करने के लिए तैयार हो गया। यह देख गणेश जी के विघ्नराज अवतार ने कमल पुष्प को अस्त्र बनाया और असुर सेना पर छोड़ दिया।
उस अस्त्र की सुगंध इतनी तेज थी कि असुर सेना मूर्छित और शक्तिहीन हो गई। वो सभी जमीन पर गिर पड़े। तब मामासुर को पता चला कि विघ्नराज का प्रभाव क्या है। वो भयभीत होकर उनकी शरण में चला गया। इस पर विघ्नराज ने मामासुर से कहा कि वो गणेश जी की पूजा जहां हो उस जगह से दूर रहे। इस तरह सभी को मामासुर के आतंक से मुक्ति मिली।