Ganesh Chaturthi 2021: योगामृत पर श्रीगणेश ने दिए उपदेश, यहां जानें ‘गणेशगीता’ के बारे में
Ganesh Chaturthi 2021 जिस प्रकार ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत ग्रंथ के ‘भीष्मपर्व’ का एक भाग है उसी तरह श्रीगणेशपुराण के क्रीड़ाखंड के 138वें अध्याय से 148वें अध्याय तक के भाग को ‘गणेशगीता’ कहा जाता है जिसमें स्वयं भगवान गणेश युद्ध के पश्चात राजा वरेण्य को उपदेश देते हैं।
Ganesh Chaturthi 2021: जिस प्रकार ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत ग्रंथ के ‘भीष्मपर्व’ का एक भाग है, उसी तरह श्रीगणेशपुराण के क्रीड़ाखंड के 138वें अध्याय से 148वें अध्याय तक के भाग को ‘गणेशगीता’ कहा जाता है, जिसमें स्वयं भगवान गणेश युद्ध के पश्चात राजा वरेण्य को उपदेश देते हैं। ‘गणेशगीता’ के 11 अध्यायों में 414 श्लोक हैं। गणेशगीता सुनते समय राजा वरेण्य अजरुन की तरह मोहग्रस्त नहीं, बल्कि मुमुक्षु थे। हां, उनके भीतर यह पश्चाताप था कि स्वयं भगवान गणेश ने उनके घर जन्म लिया, पर उन्होंने कुरूप समझकर उन्हें त्याग दिया। जबकि इसी नौ वर्ष के बालक ने सिंदुरासुर का वध करके पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त किया।
यह कथा गणेश पुराण में है कि भगवान गणोश ने राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्र के रूप में जन्म लेने का वचन दिया था, लेकिन बालक का रूप देखकर रानी के डर जाने से राजा वरेण्य ने उन्हें जंगल में छुड़वा दिया और पराशर मुनि ने उनका पालन-पोषण किया।
गणेश गीता में राजा वरेण्य ने गणोश जी से मोक्ष पाने के लिए योग की शिक्षा देने को कहा तो गणेश जी ने कहा :
सम्यग्व्यवसिता राजन् मतिस्तेकनुग्रहान्मम। श्रृंणु गीतां प्रवक्ष्यामि योगामृतमयीं नृप॥ अर्थात् ‘राजन! आपकी बुद्धि उत्तम निश्चय पर पहुंच गई है। अब मैं योगामृत से भरी गीता सुनाता हूं।’ ऐसा कहकर श्रीगणेश ने ‘सांख्यसारार्थ’ नामक प्रथम अध्याय में योग का उपदेश दिया और शांति का मार्ग बतलाया।
दूसरे अध्याय ‘कर्मयोग’ में गणेशजी ने कर्म का उपदेश दिया। ‘विज्ञानयोग’ नामक तीसरे अध्याय में उन्होंने अपने अवतार का रहस्य बताया। गणेशगीता के ‘वैधसंन्यासयोग’ नाम वाले चौथे अध्याय में योगाभ्यास तथा प्राणायाम से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण बातें बतलाईं।
‘योगवृत्तिप्रशंसनयोग’ नामक पांचवें अध्याय में योगाभ्यास के अनुकूल-प्रतिकूल बातों की चर्चा की गई है। छठे अध्याय ‘बुद्धियोग’ में श्रीगजानन कहते हैं, ‘अपने किसी सत्कर्म के प्रभाव से ही मनुष्य में मुझे (ईश्वर को) जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिसका जैसा भाव होता है, उसके अनुरूप ही मैं उसकी इच्छा पूर्ण करता हूं।’
‘उपासनायोग’ नामक सातवें अध्याय में भक्तियोग का वर्णन है। ‘विश्वरूपदर्शनयोग’ नामक आठवें अध्याय में भगवान गणेश ने राजा वरेण्य को अपना विराट रूप दिखाया। नौवें अध्याय में क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का ज्ञान तथा सत्व, रज, तम-तीनों गुणों का परिचय दिया है।
‘उपदेशयोग’ नामक 10वें अध्याय में दैवी, आसुरी और राक्षसी प्रवृत्तियों के लक्षण बतलाए गए हैं। ‘त्रिविधवस्तुविवेक-निरूपणयोग’ नामक अंतिम 11वें अध्याय में कायिक, वाचिक तथा मानसिक भेद से तप के तीन प्रकार बताए गए हैं।
गणेश जी के वचन सुनकर राजा वरेण्य राजगद्दी त्यागकर वन में चले गए और योग के सहारे उन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया। यही कारण है कि ब्रह्मवैवर्तपुराण में स्वयं भगवान कृष्ण मंगलमूर्ति गणेशजी को अपना समतुल्य बताते हैं। इस पुराण का एक बहुत बड़ा भाग ‘गणपतिखण्ड’ है, जिसमें भगवान गणेश के शिव-पार्वती के पुत्र के रूप में जन्म की कथा तथा उनकी लीलाओं का वर्णन उपलब्ध होता है।
विवेक भटनागर