सर्वप्रथम पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए
मान्यता है इन दिनों पितरों का तर्पण किया जाता है। और उन्हें खीर-पूरी का भोग लगाया जाता। यह भोग कौए को खिलाया जाता, ताकि वह पूर्वजों तक पहुंच जाए।
महाभारत के अनुशासन पर्व में उल्लेख मिलता है कि सर्वप्रथम श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। इस तरह पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया।
समय के साथ इसे अन्य ऋषि-मुनियों ने अपनाया। और धीरे-धीरे यह चार वर्णों यानी ब्राह्मण, क्षत्रिए, वैश्य और शूद्र लोग भी श्राद्ध परंपरा का निर्वाहन करने लगे।
मान्यता है इन दिनों पितरों का तर्पण किया जाता है। और उन्हें खीर-पूरी का भोग लगाया जाता है। यह भोग कौए को खिलाया जाता है, ताकि वह सीधे पूर्वजों तक पहुंच जाए।
इन विशेष बातों का रखें ध्यान
- हवन के समय पितरों के निमित्त पिंड दान दिया जाता है। मान्यता है कि इसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं कर सकते हैं। इसीलिए सर्वप्रथम पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए।
- तर्पण करते समय पिता-पितामह आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करें।
- पहले अपने कुल के पितरों को जल से तृप्त करने के पश्चात मित्रों और संबंधियों को जलांजलि देनी चाहिए।
श्राद्ध में है तीन पिंडों का विधान
- पहला पिंड: जल में अर्पित करें। यह चंद्रमा को तृप्त करता है और चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को संतुष्ट करते हैं।
- दूसरा पिंड: गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरा पिंड पत्नी खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर संतान की कामना वाले पुरुष को संतान प्रदान करते हैं।
- तीसरा पिंड: यह अग्नि में डाला जाता है, उससे तृप्त होकर पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।