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बनारस में मूर्ति विसर्जन की छूट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिर्फ वाराणसी में मूर्ति विसर्जन गंगा में करने की छूट दी है। कोर्ट ने महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह काअनुरोध स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है। महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इलाहाबाद सहित अन्य जिलों में मूर्ति विसर्जन की वैकल्पिक व्यवस्था कर दी गई है। इस आदेश के बाद एवं वैकल्पिक व्यवस्था हो जाने के

By Edited By: Published: Sat, 27 Sep 2014 12:15 PM (IST)Updated: Sat, 27 Sep 2014 12:19 PM (IST)
बनारस में मूर्ति विसर्जन की छूट

नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिर्फ वाराणसी में मूर्ति विसर्जन गंगा में करने की छूट दी है। कोर्ट ने महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह का अनुरोध स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है। महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इलाहाबाद सहित अन्य जिलों में मूर्ति विसर्जन की वैकल्पिक व्यवस्था कर दी गई है।

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इस आदेश के बाद एवं वैकल्पिक व्यवस्था हो जाने के कारण वाराणसी के सिवाय अन्य जिलों में अब गंगा व नदियों में मूर्ति विसर्जन नहीं होगा। अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी। ध्यान रहे, गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता की खंडपीठ कर रही है। न्यायमित्र अरुण गुप्ता ने सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का समर्थन किया। महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इलाहाबाद में संगम पर काली सड़क के किनारे 100 गुणा 50 मीटर एरिया का तालाब खोदा जा रहा है जिसमें विसर्जन की व्यवस्था की गई है।

मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय ने बताया कि वाराणसी में पक्के घाट होने के कारण विसर्जन के लिए तालाब नहीं बनाए जा सकते। साथ ही गंगा में कछुओं का अभ्यारण्य है और ऐसे में खोदाई नहीं की जा सकती।

गंगा को अविरल और निर्मल बनाने को अहम कदम उठाते हुए सरकार गंगा तट पर दाह संस्कार और पूजा सामग्री के विसर्जन पर लगाम लगाने की तैयारी कर रही है। केंद्र ने एक समिति बनाई है जो दाह संस्कार से प्रदूषण को रोकने की प्रौद्योगिकी सुझाएगी।

प्रदूषणकारी उद्योगों पर नकेल कसने को सरकार ने आठ अक्टूबर को उन औद्योगिक इकाइयों की बैठक बुलाई है, जिनकी गंदगी गंगा में गिरती है। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने शुक्रवार को कहा, दाह संस्कार आम तौर पर गंगा किनारे होते हैं। इसलिए उनके मंत्रालय ने इससे होने वाले प्रदूषण को रोकने को उचित प्रौद्योगिकी सुझाने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सचिव और आइआइटी कानपुर के प्रो. विनोद तारे की अध्यक्षता में तकनीकी समिति गठित की है। साधु संतों को यह विचार पसंद है।

उनका कहना है कि सरकार प्रदूषण रोकने की जिस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करेगी वह उन्हें स्वीकार होगी। भारती ने कहा, यह अल्पावधि उपाय है। दीर्घावधि उपाय के तौर पर गंगा तट के सभी शहरों में सीवर व्यवस्था बनाई जाएगी। हालांकि,सीवर का शोधित (ट्रीट) किया पानी भी गंगा में नहीं छोड़ा जाएगा। इसका इस्तेमाल कृषि तथा अन्य कार्यो में किया जाएगा। अपने मंत्रलय की सौ दिनों की उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए भारती ने कहा, गंगाजल की गुणवत्ता के अध्ययन का काम भी नीरी को सौंपा गया है। साथ ही कहा, गंगा का पर्यावरणीय प्रवाह भी सुनिश्चित किया जाएगा। इस संबंध में सुझाव देने को भी समिति गठित की गई है।

दस साल में चमकेंगे यमुना के घाट- अगले दस साल में यमुना के घाट भी साबरमती की तरह चमकेंगे। केंद्र सरकार यमुना को अविरल और निर्मल बनाने के साथ-साथ उसके घाटों को संवारने की महत्वाकांक्षी कार्ययोजना बना रही है। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।


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