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ध्यान के शिखर पर पहुंचने का सबसे आसान तरीका है, भक्ति

ध्यान के शिखर पर पहुंचने का यदि कोई सबसे आसान तरीका है तो वह भक्ति ही है क्योंकि इसमें न तो कोई तर्क होता है न विचार होता है और न ही इसे उत्पन्न करने के लिए किसी ज्ञान की आवश्यकता होती है।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Sun, 05 Dec 2021 11:44 AM (IST)Updated: Sun, 05 Dec 2021 11:44 AM (IST)
ध्यान के शिखर पर पहुंचने का सबसे आसान तरीका है, भक्ति
ध्यान के शिखर पर पहुंचने का सबसे आसान तरीका है, भक्ति

ध्यान के शिखर पर पहुंचने का यदि कोई सबसे आसान तरीका है तो वह भक्ति ही है, क्योंकि इसमें न तो कोई तर्क होता है, न विचार होता है और न ही इसे उत्पन्न करने के लिए किसी ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह बस हृदय में समाए प्रेम का उद्गार है जिसे भक्त गीत और संगीत में पिरोकर अभिव्यक्त करता है। दरअसल भक्ति में केवल गीत, संगीत और धुन ही भरी होती है। गीत और संगीत के साथ भक्ति में नृत्य भी शामिल है।

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भक्तों ने अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति के लिए अपनी-अपनी भाषाओं और बोलियों में गद्य के स्थान पर पद्य को ही चुना है, क्योंकि पद्य में भक्ति के संगीत को पिरोया जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी संपूर्ण रामचरितमानस को अभिव्यक्त करने में पद्य का ही सहारा लिया है। यही वजह है कि रामचरितमानस को लोग विभिन्न संगीत की धुनों में पिरोकर अपने-अपने तरह से पढ़ते-गाते और आनंद की अनुभूति करते हैं। वास्तव में जो व्यक्ति भक्ति के रस को पीता है वह निश्चित ही इसके आनंद में जीता है। वस्तुत: भक्ति के शब्दों में उतना रस नहीं होता जितना इन शब्दों की धुन में होता है। शब्द तो प्राय: बौने भी होते हैं, किंतु जब इन्हें भक्ति के रस और रंग में लपेटा जाता है तब ये अनूठे हो जाते हैं। कई बार भक्ति की लय में कोई शब्द समझ में ही नहीं आता है। यहां तो बस संगीत की धुन का ही आनंद मिलता है।

मस्तिष्क की सोई हुई चेतना को जागृत करने का इससे सरल उपाय कोई दूसरा नहीं हो सकता है, क्योंकि यहां न तो विचारों में खोना है, न किसी ज्ञान को तलाशना है और न ही किसी तर्क के जाल में उलझना है। यहां तो केवल भक्ति के भावों में बहना है। महान भक्तों द्वारा रचित भक्ति भरे गीतों के अर्थ कह और सुनकर नहीं जाने जा सकते। इन्हें तो जानने के लिए इनमें डूबना पड़ता है। तभी आनंद की अनुभूति करके इनके वास्तविक अर्थ को जाना जा सकता है।

वीके जायसवाल


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