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ताज या शिवालय!

दुनिया को दीवाना बनाने वाला ताजमहल मुगलिया तामीर की मिसाल है या फिर प्राचीन शिव मंदिर। सालों पुराना ये विवाद एक फिर अदालत की चौखट तक पहुंच गया है। लखनऊ के अधिवक्ता हरीशंकर जैन आदि ने आगरा में सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां इसे लेकर मूल वाद दायर किया

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 10 Apr 2015 01:09 PM (IST)Updated: Fri, 10 Apr 2015 02:07 PM (IST)
ताज या शिवालय!

दुनिया को दीवाना बनाने वाला ताजमहल मुगलिया तामीर की मिसाल है या फिर प्राचीन शिव मंदिर। सालों पुराना ये विवाद एक फिर अदालत की चौखट तक पहुंच गया है। लखनऊ के अधिवक्ता हरीशंकर जैन आदि ने आगरा में सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां इसे लेकर मूल वाद दायर किया है। जिस पर अदालत

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ने केंद्री गृह मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को नोटिस जारी किए हैं। उनसे छह मई को प्रतिवाद दाखिल करने को कहा है।

ताजमहल को शिवालय घोषित कराने के लिए लखनऊ के अधिवक्ता हरीशंकर जैन ने आगरा में सिविल जज सीनियर डिवीजन डॉ. जया पाठक के न्यायालय में आठ अप्रैल को मूल वाद दायर किया। उनके

साथ लखनऊ के अधिवक्ता अखिलेंद्र द्विवेदी, सुधा शर्मा, राहुल श्रीवास्तव, पंकज कुमार वर्मा और रंजना अग्निहोत्री भी वादी हैं। हरीशंकर जैन के वकील राजेश कुलश्रेष्ठ के मुताबिक वाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और एएसआइ को प्रतिवादी बनाते हुए कहा गया है कि ताजमहल पूर्व में तेजो महालय मंदिर के

नाम से था।

याचिका के मुताबिक माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में कालिया नाग को नाथा था, जिसके बाद

कालिया नाग आगरा में इसी जगह आकर छिपा। 1212 ईस्वी में राजा परमार्दी देव ने यहां तेजोमहालय के नाम से मंदिर निर्माण कराया। जिसमें अग्रेश्वर महादेव नाग नाथेश्वर विराजमान कराए गए। समय गुजरने के बाद आगरा परमार्दी देव के वंशज जयपुर के राजा मानसिंह के पौत्र जयसिंह के अधिकार क्षेत्र में आया। इसके बाद मुगल

बादशाह शाहजहां ने इसे कब्जे में ले लिया। दरअसल, ताज के नीचे बने गर्भ गृह को खोलने, वहां पूजा-अर्चना की अनुमति देने और ताजमहल को शिवालय घोषित करने की मांग समय-समय पर उठती रही है।

अब अदालत ने ताजा वाद को स्वीकार करते हुए प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हैं और छह मई को जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है। मामले में 13 मई को वाद के बिंदु तय किए जाएंगे। याची की ओर

से पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं में राजेश कुलश्रेष्ठ, माधो सिंह, हरिओम कुलश्रेष्ठ, इंद्र मोहन सक्सैना, राधाकृष्ण गुप्ता, गौरव जैन शामिल थे। पहले खारिज हो चुका है लोकवाद का प्रार्थना पत्र लखनऊ के अधिवक्ताओं ने इससे पहले ताजमहल को शिवालय घोषित कराने के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन की ही अदालत में लोकवाद दायर करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। बीती 19 मार्च को दाखिल प्रार्थना पत्र को अदालत ने लोकवाद न मानते हुए खारिज कर दिया था।


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