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देश और दुनिया में 20 लाख पांडुलिपियों का संपादन जारी

जैन समाज के अनुयायी कई सालों से ऐसी कवायद में जुटे हैं, जिससे जैन साहित्य न केवल सुरक्षित है, बल्कि वह आम लोगों के लिए भी सुलभ है। अकबर बादशाह ने आचार्य हीरविजय के अहिंसा के सिद्धांत से प्रभावित होकर पर्युषण पर्व के दौरान पूरे देश में हिंसा पर रोक लगाने का जो फरमान खत के रूप में जारी किया था, वह आज धरोहर के रूप में संरक्षि

By Edited By: Published: Thu, 06 Mar 2014 04:03 PM (IST)Updated: Thu, 06 Mar 2014 04:35 PM (IST)
देश और दुनिया में 20 लाख पांडुलिपियों का संपादन जारी

धार। जैन समाज के अनुयायी कई सालों से ऐसी कवायद में जुटे हैं, जिससे जैन साहित्य न केवल सुरक्षित है, बल्कि वह आम लोगों के लिए भी सुलभ है। अकबर बादशाह ने आचार्य हीरविजय के अहिंसा के सिद्धांत से प्रभावित होकर पर्युषण पर्व के दौरान पूरे देश में हिंसा पर रोक लगाने का जो फरमान खत के रूप में जारी किया था, वह आज धरोहर के रूप में संरक्षित है। दूसरी ओर जैन समाज के राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार इस प्रयास में हैं कि किसी तरह से 20 लाख पांडुलिपियों को लोगों को हिंदी और अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध कराया जाए।

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मोहनखेड़ा तीर्थ में होने वाले जैन समाज के साहित्यकारों के राष्ट्रीय सम्मेलन के समन्वयक डॉ. गणवंत शाह ने बताया कि जैन साहित्य को सुरक्षित करना अहम है। पूरे देश और दुनिया में जैन समाज के लोग निवासरत हैं। साहित्य को सुरक्षित करने की कवायद 1977 से शुरू हुई थी, जो आज एक बड़ा स्वरूप हासिल कर चुकी है। अहमदाबाद के लालभाई दजभाई इंस्टीट्यूट में ये पांडुलिपियां सुरक्षित रखी हुई हैं।

देश की भी धरोहर हैं-

उन्होंने कहा कि कई पांडुलिपियां ऐसी दुर्लभ हैं, जो न केवल जैन समाज के लिए बल्कि देश की भी धरोहर हैं। कई साल पहले महत्वपूर्ण पांडुलिपियां चोरी भी हुई हैं, जो विदेशों में पहुंच गईं। इसलिए हमने इन पांडुलिपियों को सुरक्षित करने के लिए तिजोरियों का भी प्रयोग किया है। जैन समाज एकमात्र ऐसा समाज है जहां ज्ञान की पूजा होती है। इसलिए ज्ञान पंचमी बनी है।

जूनी गुजराती में है साहित्य-

डॉ. शाह ने बताया कि जैन साहित्य मुख्य रूप से जूनी गुजराती में लिखा हुआ है। यह साहित्य दो हजार साल पुराना है, जो कि ताड़पत्र पर दर्ज है। उन्होंने कहा कि इन सबको सुरक्षित रखने के लिए विशेषष रूप से प्रयास चल रहे हैं। आचार्य हीरविजय से लेकर और भी कई महत्वपूर्ण आचार्यो की वाणी हमारे पास में पांडुलिपि के तौर पर सुरक्षित है। जैन साहित्य को पूरे विश्व में हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं। इस कार्य में ऐसे कई लोग समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं।


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