बुद्ध के आंगन में पिंडदान
बोधगया के पावन निरंजना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बुधवार को सनातनी आस्थावानों की भीड़ उमड़ पड़ी। पितृपक्ष मेले में गया जी के साथ-साथ बोधगया स्थित धर्मारण्य, मातंगवापी में पिंडदान और सरस्वती नदी तर्पण का विधान है। उक्त कृत्य को पितृपक्ष के तृतीया तिथि को किया जाता है।
बोधगया (गया)। बोधगया के पावन निरंजना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बुधवार को सनातनी आस्थावानों की भीड़ उमड़ पड़ी। पितृपक्ष मेले में गया जी के साथ-साथ बोधगया स्थित धर्मारण्य, मातंगवापी में पिंडदान और सरस्वती नदी तर्पण का विधान है। उक्त कृत्य को पितृपक्ष के तृतीया तिथि को किया जाता है।
सरस्वती वेदी तक पहुंच मार्ग सुलभ न होने के पिंडदानी अपने पुरोहित के निदेश के तहत धर्मारण्य वेदी के समीप मुहाने नदी में स्नान व तर्पण के विधान को संपन्न करते हैं और फिर अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना को लेकर वेदी में आकर पिंडदान के विधान को करते हैं। यहां पिंडदान के पश्चात अष्टकमल आकार के कूप में पिंड को समर्पित करते हैं। धर्मारण्य वेदी पर कई ऐसे भी पिंडदानी पहुंच रहे हैं। जो प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए त्रिपिंडी श्रद्ध करते हैं। अत्यधिक भीड़ होने के कारण कुछेक श्रद्धालु नदी तट पर भी पिंडदान के कर्मकांड को करते दिखायी पड़े। उसके बाद पिंडदानी मातंगवापी वेदी की ओर कूच कर जाते हैं। जहां पिंडदान के विधान को संपन्न कर मातंगेश्वर महादेव पर पिंड को अर्पित करते हैं। यहां वाहन पड़ाव स्थल नहीं होने के कारण यत्रतत्र वाहनों का पड़ाव दिखा।
बुद्ध के आंगन में पिंडदान
विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर परिसर में भी पिंडदानियों की भीड़ जुटी है। मुचलिंद सरोवर के समीप पिंडदान के लिए समिति द्वारा स्थान निर्धारित किया गया है। भगवान विष्णु के अवतार मानकर महाबोधि मंदिर में पिंडदान करते हैं। कुछ ऐसे भी श्रद्धालु हैं जो धर्मारण्य, मातंगवापी व सरस्वती वेदी तक नहीं पहुंच पाते हैं। वैसे सभी उक्त वेदी पर होने वाले कर्मकांड को यहीं संपन्न करते हैं।