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'जीत चलीं ब्रज नारी, हारे रे रसिया'

प्रहलाद नगरी फालैन में भक्ति में शक्ति का नजारा होलिका दहन की रात्रि फिर साकार हुआ। भक्त प्रहलाद की माला पहन बाबूलाल पंडा दहकती होलिका के अंगारों से सकुशल पार हो गया। इस नजारे को जिसने भी देखा अचंभित रह गया। पंडा ने जैसे ही अंगारों को पार किया वातावरण जयघोष से गूंज उठा। पंडा के हैरतअंगेज कारनामे का साक्षी

By Edited By: Published: Wed, 19 Mar 2014 01:03 PM (IST)Updated: Wed, 19 Mar 2014 01:15 PM (IST)
'जीत चलीं ब्रज नारी, हारे रे रसिया'

कोसीकलां। प्रहलाद नगरी फालैन में भक्ति में शक्ति का नजारा होलिका दहन की रात्रि फिर साकार हुआ। भक्त प्रहलाद की माला पहन बाबूलाल पंडा दहकती होलिका के अंगारों से सकुशल पार हो गया। इस नजारे को जिसने भी देखा अचंभित रह गया। पंडा ने जैसे ही अंगारों को पार किया वातावरण जयघोष से गूंज उठा।

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पंडा के हैरतअंगेज कारनामे का साक्षी बनने के लिये विदेशी भक्त भी दोपहर से फालैन आने लगे थे। रात्रि होने के साथ ही गांव की हर गली में होली गायन शुरू हो गया। विभिन्न गांव पंचायतों के हुरियारे ढोल नगाड़ों के साथ होलिका को परंपरागत रूप से पूजने के लिए आते रहे। रात्रि बारह बजे मेला स्थल पर दर्शकों ने अपनी आंखें जमा लीं।

सोमवार की भोर में ठीक साढ़े तीन बजे मंदिर में बैठे बाबूलाल पंडा ने अग्नि देव से होलिका में प्रवेश की आज्ञा के लिए प्रार्थना शुरू कर दी। ठीक चार बजे भक्त की प्रार्थना स्वीकार हुई। इशारा मिलते ही होलिका में अग्नि प्रवेश करा दी गई।

पंडा पंडितों और समाज के साथ प्रहलाद कुण्ड पर पहुंचा। इधर पंडा की बहन ने विशाल होलिका की दुग्ध धार से परिक्रमा लगाकर अपने भाई की होलिका मैया से सलामती की प्रार्थना की। करीब साढ़े चार बजे होलिका के अंगारे धधक उठे तभी पंडा प्रहलाद कुण्ड में डुबकी लगाकर धधकती होलिका की ओर दौड़ पडे और उसके बीच से होकर सकुशल निकले। इस मौके पर राधा चरन महाराज और समाज के लोग मौजूद थे।

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही-सुरक्षा व्यवस्था के तहत कई जगह बैरियर लगाए गए। आइजी आशुतोष पांडेय, डीएम विशाल चौहान और एसएसपी अखिलेश मीना व्यवस्थाओं पर निगाह रखे थे।

छतों और छज्जों पर भी भीड़-दर्शकों ने पहले दाऊजी महाराज व माता रेवती के दर्शन किए, फिर मंदिर की छत पर हुरंगा देखने जमा हो गए। मंदिर प्रांगण के चारों ओर छतों, छज्जों तथा दीवालों पर श्रद्धालु जमे थे। हुरंगा का आनंद लेने के लिए विदेशी पर्यटक भी आए थे। मंदिर के चौक में सुबह से समाज गायन शुरू हो गया था। पूरे मंदिर परिसर को कलात्मक रूप से सजाया गया था।

विदेशी- पुलिसवाले भी नहीं बख्शे-पुलिस वाले भी हुरियारिनों के कोड़ों से नहीं बचे। जिस तरफ हुरियारिनों की टोली निकलती, उस तरफ भगदड़ मच जाती। हुरियारिनों ने विदेशी श्रद्धालुओं को प्रेम के रंग में डुबो कर उन पर भी कोड़े बरसाए।

सैकड़ों साल पुराना है हुरंगा-हुरंगा की परंपरा 400 वर्ष से अधिक पुरानी है। इसमें गोपिका स्वरूप महिलाएं पारंपरिक रूप से लहंगा फरिया पहनकर रसिया गीत गाती खाली हाथ घरों से आती हैं। मंदिर में पुरुष गोप स्वरूप रसिया गीतों के माध्यम से काजल लगे नैनों की मार से गोपिकाओं को उलाहना देकर उकसाते हैं।


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