पितरों के मोक्ष पर आपदा का साया
भू बैकुंठ बदरीनाथ धाम में आई आपदा की मार श्राद्ध पक्ष पर भी पड़ी है। बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल तीर्थ में श्राद्ध पक्ष में पिंडदान के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हिंदू धर्म के लोग आते थे। श्राद्ध पक्ष से पूर्व बदरीनाथ की यात्रा सुचारू न होने के चलते इस बार श्रद्धालु यहां नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष पूर्णिम
गोपेश्वर, जागरण प्रतिनिधि। भू बैकुंठ बदरीनाथ धाम में आई आपदा की मार श्राद्ध पक्ष पर भी पड़ी है। बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल तीर्थ में श्राद्ध पक्ष में पिंडदान के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हिंदू धर्म के लोग आते थे। श्राद्ध पक्ष से पूर्व बदरीनाथ की यात्रा सुचारू न होने के चलते इस बार श्रद्धालु यहां नहीं पहुंच पा रहे हैं।
इस वर्ष श्राद्ध पक्ष पूर्णिमा की तिथि 19 सितंबर से शुरू होकर पितृ आमावस्या यानी चार अक्टूबर को संपन्न होगा। इस दौरान बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल तीर्थ में हजारों श्रद्धालु पिंडदान के लिए पहुंचते हैं। आपदा के बाद सरकारी तौर पर यात्रा बंद होने व बदरीनाथ तक सड़क सुविधा न होने के कारण श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मकपाल तीर्थ में कम ही श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। हालांकि यजमान की उम्मीद में तीर्थ पुरोहित श्री बद्रिकाश्रम में ही डेरा डाले हुए हैं। तीर्थ पुरोहित रमेश चंद्र सती का कहना है कि ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान के लिए श्राद्ध पक्ष में लगातार देश के कोने-कोने ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु जानकारी मांग रहे हैं।
यह है महात्म्य
गच्छमतं बदरिम् तृष्ट्वा स्वम् वंशम् पितरो मुने: क्रीडंतम् निलयं विष्णो वैकुंठं प्राप्तनवो वयम्।। यानी पितरों की कामनाएं होती हैं कि उनके वंश में कोई न कोई संतान अवश्य जन्म ले। जो बदरीनाथ जाकर उनका पिंडदान करें और वे मोह रूपी इस संसार से हमेशा के लिए मुक्त होकर बैकुंठ धाम को जाएं। मान्यता है कि विश्व में एकमात्र श्री बदरीनाथ धाम ही ऐसा है जहांब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान के बाद पितृ मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। इसके बाद कहीं भी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि जब ब्रह्मा ने अपनी पुत्री प्रथ्वी पर गलत दृष्टि डाली तो, शिव ने त्रिशूल से ब्रह्मा का एक सिर धड़ से अलग कर दिया। ब्रह्मा का यह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्महत्या का पाप भी लगा था। दुनिया भर के भ्रमण के बाद भी त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर अलग नहीं हुआ। अंत में उन्हें बद्रिकाश्रम के ब्रह्मकपाल तीर्थ में उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। तभी से इसे कपाल मोचन तीर्थ कहते हैं। यहां पर शिव के त्रिशूल पर चिपका ब्रह्मा का सिर छूटकर एक शिला के रूप में परिवर्तित हुआ था।
ये हैं पिंडदान कराने के अधिकारी
ब्रह्मकपाल तीर्थ पुरोहित को लेकर मैठाणा के हटवाल, श्रीनगर गिरी गांव के हटवाल, जोशीमठ के नौटियाल एवं सती ब्राह्मणों को यहां पिंडदान कराने का अधिकार है।
बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल में पिंडदान का अपना महात्म्य है। यहां पिंडदान के बाद पित्र मोक्ष के अधिकारी हो जाते हैं। फिर कहीं भी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं होती है। -भुवन चंद्र उनियाल, धर्माधिकारी श्री बदरीनाथ धाम
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