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Basant Panchami 2023: बसंत पंचमी पर जानिए माता सरस्वती का स्वरूप हमें क्या सिखाता है

Basant Panchami 2023 ज्ञान की देवी भगवती के जन्मदिन वसंत पंचमी पर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़ें। बसंत पंचमी के मौके पर जानिए मां सरस्वती के स्वरूप के बारे में।

By Shivani SinghEdited By: Shivani SinghPublished: Mon, 23 Jan 2023 10:40 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2023 10:40 AM (IST)
Basant Panchami 2023: बसंत पंचमी पर जानिए माता सरस्वती का स्वरूप हमें क्या सिखाता है
Basant Panchami 2023: बसंत पंचमी पर जानिए माता सरस्वती का स्वरूप हमें क्या सिखाता है

नई दिल्ली, Basant Panchami 2023: डा. प्रणव पण्ड्या (प्रमुख, अखिल विश्व गायत्री परिवार): प्राकट्येन सरस्वत्या वसन्त पंचमी तिथौ। विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते।।’

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अर्थात वसंत पंचमी तिथि में भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संसारभर में इसे विद्या जयंती के रूप में मनाते हैं। सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवती सरस्वती के जन्मदिन पर अनेक अनुग्रहों के लिए कृतज्ञता भरा अभिनंदन करें। उनकी कृपा का वरदान प्राप्त होने की पुण्य तिथि हर्षोल्लास से मनाएं, यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों को मानवी आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय तत्ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मानुषी आकृति और भाव गरिमा से संजोया है। इनकी पूजा, अर्चन-वंदन व धारण हमारी चेतना को देवगरिमा के समान ऊंचा उठा देते हैं। साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खड़ा है। मां सरस्वती के हाथ में पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देती है। अपने देश में यह समझा जाता है कि विद्या नौकरी करने के लिए प्राप्त की जानी चाहिए, जबकि विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के निखार एवं गौरवपूर्ण विकास के लिए है। पुस्तक के पूजन के साथ-साथ ज्ञान वृद्धि की प्रेरणा ग्रहण करने और उसे इस दिशा में कुछ कदम उठाने का साहस करना चाहिए। स्वाध्याय हमारे दैनिक जीवन का अंग बन जाए। हम ज्ञान की गरिमा समझने लग जाएं और उसके लिए मन में तीव्र उत्कंठा जाग पड़े तो समझना चाहिए कि पूजन की प्रतिक्रिया ने अंतःकरण तक प्रवेश पा लिया।

प्रदत्तेप्रेरणा वाद्यात्वीणा हस्ताम्बुजा हियत्।

हतन्त्री खलु चास्माकं सर्वदा झंकृता भवेत्।।

अर्थात कर-कमलों में वीणा धारण करने वाली भगवती वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती है कि हमारी हृदय रूपी वीणा सदैव झंकृत रहनी चाहिए। हाथ में वीणा का अर्थ है हम संगीत व कलाप्रेमी बनें, कला पारखी बनें, कला के संरक्षक बनें। माता की तरह उसका सात्विक पोषण करें। जो अनाचारी कला के साथ व्यभिचार करने पर तुले हैं, पशु प्रवृत्ति भड़काने और अश्लीलता पैदा करने में लगे हैं, उनका विरोध व भर्त्सना करें। मां सरस्वती का वाहन मयूर है। मयूर अर्थात मधुरभाषी। हमें सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर बनना ही चाहिए। प्रकृति ने मोर को कलात्मक, सुसज्जित बनाया है। हमें भी अपनी अभिरुचि परिष्कृत बनानी चाहिए। मां सरस्वती की प्रतीक प्रतिमा मूर्ति अथवा तस्वीर के आगे पूजा-अर्चना का सीधा तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार व शिरोधार्य किया जाए। बिना सरस्वती की कृपा के विश्व का कोई महत्त्वपूर्ण कार्य सफल नहीं हो सकता है। प्राचीनकाल में जब हमारे देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तब इस देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। दूर-दूर से लोग यहां सत्य-ज्ञान की खोज में आते थे और भारतीय गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या सीखते थे।

ज्ञान की देवी भगवती के जन्मदिन वसंत पंचमी पर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़ें। विद्या के इस आदि त्योहार पर हम ज्ञान की ओर बढ़ने के लिए नियमित स्वाध्याय के साथ-साथ दूसरों तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाने के लिए संकल्पित हों।

‘दृष्ट वाशिवृद्धिं सर्वत्र भगवत्यधिकाधिकाम्।

सज्जायते प्रसन्ना सा वाग्देवी तु सरस्वती।।’

अर्थात विद्या की सब जगह अधिकाधिक अभिवृद्धि देखकर भगवती सरस्वती प्रसन्न होती हैं। वसंत का त्योहार हमारे लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी, जो पशुता से मनुष्यता, अज्ञानता से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते हैं और जिन्होंने तप, त्याग और अध्यवसाय से इन्हें प्राप्त किया है, उनका सम्मान करते हैं। संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भगीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते हैं। श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला भी श्रेष्ठ होता है। इसलिए आइए! हम इस शुभ अवसर पर उत्तम मार्ग का अनुसरण करें।

प्रस्तुति : अनूप कुमार सिंह


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