Move to Jagran APP

Anant Chaturdashi 2020 Vrat Katha: श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा, यहां पढ़ें

Anant Chaturdashi 2020 Vrat Katha अनंत चतुर्दशी को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। एक बार युद्धिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। यज्ञ जिस मंडप में हो रहा था वह बेहद सुंदर था।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2020 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2020 07:50 AM (IST)
Anant Chaturdashi 2020 Vrat Katha: श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा, यहां पढ़ें
Anant Chaturdashi 2020 Vrat Katha: श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा, यहां पढ़ें

Anant Chaturdashi Vrat Katha 2020: अनंत चतुर्दशी को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। एक बार युद्धिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। यज्ञ जिस मंडप में हो रहा था वह बेहद सुंदर था। यज्ञ मंडप जल में स्थल तथा स्थल में जल की तरह लग रहे थे। वैसे तो कई सावधानियां रखी गई थीं लेकिन फिर भी कई लोग उस मंडप को देख धोखा खा चुके थे। फिर दुर्योधन भी वहां आ गए जहां यज्ञ मंडप लगा था। वो तालाब को स्थल समझकर उसमें गिर गया। यह देख द्रौपदी की हंसी निकल गई। उसने दुर्योधन को अंधों की संतान अंधी कहा। वो जोर-जोर से हंसने लगी। यह देख दुर्योधन चिढ़ गया।

loksabha election banner

यह बात उसके दिल पर लग गई। इससे उसके मन में द्वेष उत्पन्न हो गया। दुर्योधन ने पांडवों से बदला लेने का फैसला किया। इस द्वेष में उसने पांडवों को द्यूत-क्रीड़ा में हरा दिया। पांडवों को पराजित होने पर 12 वर्षों का वनवास भोगना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने कई कष्ट सहे। एक दिन कृष्ण जी उनसे मिलने गए। तब युधिष्ठिर ने कृष्ण जी से अपना दुख कहा। साथ ही इस परेशानी से उभरने का उपाय भी पूछा। 

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे युधिष्ठिर के समस्त कष्ट दूर हो जाएंगे। साथ ही राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा। इस संदर्भ में कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को कथा सुनाई-

प्राचीन काल में एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था जिसका नाम सुमंत नाम था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी एक बेटी भी थी जिसका नाम सुशीला था। उसकी पुत्री परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। सुशीला के बड़े होते-होते उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। सुमंत की पत्नी की मृत्यु होने से उसने कर्कशा नामक स्त्री से दोबारा विवाह कर लिया। फिर उसने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह भी करा दिया। सुशीला का विवाह कौंडिन्य ऋषि के साथ सम्पन्न हुआ। विदाई में कर्कशा

यह देख कौंडिन्य ऋषि बेहद दुखी हुए और अपनी पत्नी सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। लेकिन आश्रम पहुंचते पहुंचते रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे। वहां पर सुशीला ने कुछ स्त्रियों को देखा। वो सभी स्त्रियां सुंदर वस्त्र पहने थीं और किसी देवता की पूजा कर रही थीं। जब सुशीला ने उनसे पूछा तब स्त्रियों ने उसे विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने उसी जगह व्रत का अनुष्ठान किया। उसने चौदह गांठों वाला डोर हाथ में बांध लिया और अपनी पति ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

जब कौंडिन्य ने सुशीला से उस डोर के बारे में पूछा तब उसने व्रत के बारे में बताया। लेकिन ऋषि ने उसे तोड़ दिया और अग्नि में डाल दिया। इससे अनंत भगवान का अपमान हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि कौंडिन्य अत्यंत दुखी रहने लगे। उनके पास जो कुछ भी था वो सब नष्ट हो गया। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा कि इस दरिद्रत का कारण क्या है। तब सुशीला ने उन्हें डोरा जलाने वाली याद दिलाई।

ऋषि को अपनी गलती समझ आई और वो वन चल दिए अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए। कई दिनों तक वो वहीं रहे लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। कई दिनों तक भटकने के बाद वो भूमि पर गिर पड़े। फिर अनंत भगवान प्रकट हुए। उन्होंने कहा तुमने मेरा तिरस्कार किया था। यही कारण है कि तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ रहा है। लेकिन तुम्हारा पश्चाताप हो गया है। तुम वापस जाओ और विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्ष के बाद तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। जैसा अनंत भगवान ने कहा था ठीक वैसा ही ऋषि ने कहा। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया। इसके प्रभाव से ही पांडवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली और चिरकाल तक राज्य करते रहे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.