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200 वर्ष पुराने जनकपुर मंदिर में सजेगी राम विवाह की कोहबर

वाराणसी। भक्तों के भाव पर रीझते भोले शंकर और खुद अपने आराध्य देव के लिए हृदय के पट खोले। उनकी नगरी में श्रीराम के नाम का उपनगर (रामनगर) और इसमें प्रभु समेत चारों भाइयों के विवाह संस्कारों को समेटे अनूठे पल 'कोहबर की झांकी' को संजोए जनकपुर मंदिर। सिया समेत चारों बहनें और साथ पिया। सीता-राम, मांडवी-भरत, उर्मिल

By Edited By: Published: Fri, 06 Dec 2013 04:20 PM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2013 04:41 PM (IST)
200 वर्ष पुराने जनकपुर मंदिर में सजेगी राम विवाह की कोहबर

वाराणसी। भक्तों के भाव पर रीझते भोले शंकर और खुद अपने आराध्य देव के लिए हृदय के पट खोले। उनकी नगरी में श्रीराम के नाम का उपनगर (रामनगर) और इसमें प्रभु समेत चारों भाइयों के विवाह संस्कारों को समेटे अनूठे पल 'कोहबर की झांकी' को संजोए जनकपुर मंदिर।

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सिया समेत चारों बहनें और साथ पिया। सीता-राम, मांडवी-भरत, उर्मिला-लक्ष्मण व श्रुतकीर्ति -शत्रुघ्न की दुर्लभ प्रतिमाएं। मानों नयनों में समा जाएंगी, इस रास्ते ही हृदय की कोटरों में उतर आएंगी। अहंकार के प्रतीक धनुष को तोड़ प्रभु दांपत्य बंधन में बंधे। चारों भाइयों के सिर एक साथ सेहरे सजे और एक मंडप में जनकपुर में विवाह हुआ।

दो सौ वर्ष से अधिक पुराने मंदिर में श्रीराम कथा का यह अंश मूर्तिवत दिखाई देता है। भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना और ऐसी संगमरमरी झांकी जैसा कहीं देखा न सुना। यह बनारस राजघराने की कला प्रियता का प्रमाण भी दे जाता है। मंदिर के पुजारी पं. लक्ष्मीनारायण पांडेय व्यास के अनुसार पूरे भारत में इस तरह की अद्भुत प्रतिमा कहीं और नहीं। भोग लड्डू खाझा का - मार्गशीर्ष (अगहन) शुक्ल पंचमी पर मंदिर में राम विवाह पंचमी की धूम होगी। इस बार यह तिथि सात दिसंबर को पड़ रही है। फूलों से हर वर्ष की भांति इस बार भी सजेगी मनोरम झांकी और नवदंपती को लगेगा लड्डू, खाझा और बालूशाही का भोग। परंपरा के अनुसार विवाहोत्सव में काशिराज परिवार के सदस्य भी शामिल हैं। पीएसी की टुकड़ी सियाराम समेत चारों वर वधुओं को गार्ड आफ आनर देती है। व्यवस्थापक पं. रजनीश पांडेय के अनुसार गार्ड आफ आनर के बाद शाम 5.30 बजे कोहबर झांकी की आरती और रात 9.30 बजे तक दर्शन होगा। रामचरित मानस के विवाह प्रसंग का पारायण चलता रहेगा।

काशिराज परिवार ने दिया आकार- मंदिर की स्थापना में काशिराज घराने की महिला सदस्य उमा बबुनी का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। विभोर भक्तन ने प्रभु के कोहबर की झांकी को 1804 में मंदिर बनाकर इसमें सजोया। खास यह कि मंदिर में स्थापना से पहले तब तक मूर्तियों को बनवाया जब तक मन को न भाया। चौथी बार बनी प्रतिमाओं को मंदिर में स्थापित किया गया। इससे पहले की मूर्तियां गंगा में विसर्जित कर दी गईं। बताते हैं रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला वर्ष 1806 में शुरू हुई तो इसमें राम विवाह से जुड़े प्रसंगों का मंचन भी किया जाने लगा। आज भी 36वीं वाहिनी पीएसी परिसर के समीप स्थित मंदिर में धनुष यज्ञ, विवाह व बरात विदाई की लीला की जाती है।

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