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सोमवार को शिव पूजा में पढ़ें ये कथा, पार्वती की भी पूरी हुई थी मनोकामना

सोमवार को शिव की पूजा की जाती है। कहते हैं उस दिन इस कथा को पढ़ने से मनोकामनायें पूरी हो जाती हैं।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 02 Apr 2018 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 10:13 AM (IST)
सोमवार को शिव पूजा में पढ़ें ये कथा, पार्वती की भी पूरी हुई थी मनोकामना
सोमवार को शिव पूजा में पढ़ें ये कथा, पार्वती की भी पूरी हुई थी मनोकामना

ऐसे करें पूजा 

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नारद पुराण में कहा गया है कि सोमवार के व्रत को करने के लिए सबसे पहले स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए और शिव पार्वती की पूजा करनी चाहिए। शिव पूजन के बाद उसकी व्रत कथा सुननी चाहिए। इस व्रत में एक समय ही भोजन करना चाहिए। ऐसा ही माना जाता है कि सोमवार का व्रत तीसरे पहर तक मतलब शाम तक ही रखना चाहिए। शिव पूजा में सरल मन से उनका ध्‍यान करते हुए आवाहन करना चाहिए। उसके बाद शिव जी का जल से अभिषेक करते हुए अर्ध्‍य देना चाहिए, फिर घी, दूध, दही, शहद, शक्‍कर और अंत में पुन: शुद्ध जल के पंचामृत से स्‍नान करा कर मंत्रों सहित आचमन कराना चाहिए। इसके बाद शिव जी पर वस्‍त्र, चंदन, फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें। सबसे अंत में धूप, दीप और कपूर से शिव जी की आरती करें और उनका आर्शिवाद प्राप्‍त करें। 

इस कथा का करें पाठ

सोमवार को शिव जी की इस कथा का पाठ करना बेहद पुण्‍य दायक माना जाता है। कहते हैं एक समय महादेव जी मृत्युलोक में विवाह की इच्छा से पार्वती के साथ विदर्भ देश पधारे। वहां के राजा द्वारा एक अत्यंत सुन्दर शिव मंदिर था, जहां वे रहने लगे। यहीं एक बार पार्वती जी ने चौसर खलने की इच्छा की, और मंदिर के पुजारी से पूछा कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? ब्राह्मण ने कहा कि महादेव जी की, लेकिन पार्वती जी जीत गयीं और झूठ बोलने के अपराध में उन्होंने पुजारी को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। कुछ दिनों के बाद देवलोक की अप्‍सरायें मंदिर में पधारीं और पुजारी की अवस्‍था का कारण पूछा जिस पर उसने सब बताया। तब अप्सराओं ने उसे सोमवार के व्रत रखने के लिए कहा, और कहा इस व्रत के करने से शिवजी की कृपा से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। तब पुजारी ने सोमवार का व्रत विधि अनुसार कर के रोगमुक्त होकर शेष जीवन व्यतीत किया। कुछ दिन बाद शिव पार्वती दोबार वहां पधारे तो हैरान पार्वती जी ने उसके रोगमुक्त होने का करण पूछा, तब ब्राह्मण ने सारी कथा बता दी। इस पर पार्वती जी ने भी यही व्रत किया जिससे भी उनकी मनोकामना पूर्ण हुई  और रूठे पुत्र कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी बन गए। 


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