पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति दिलाती है अजा एकादशी जानें कैसे करें इसका व्रत एवम् पूजन
6 सितंबर 2018 को अजा एकादशी का व्रत एवम् पूजन किया जायेगा। पंडित दीपक पांडे बता रहे है इस व्रत का महातम्य आैर पूजन विधि।
राजा हरिश्चंद्र को मिली थी मुक्ति
वर्ष भर पड़ने वाली एकादशियों में से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी पर भी भगवान श्री विष्णु के पूजन का विधान होता है। इस वर्ष अजा एकादशी 6 सितंबर 2018 को हो रही है। मान्यता है कि इस दिन व्रत आैर विधि विधान से पूजा करने पर इंसान के इस जन्म के ही नहीं बल्कि पूर्व जन्म के भी पापों का नाश हो जाता है। पौराणिक कथाआें के अनुसार अपने पूर्व जन्म के कारण भारी कष्ट भोग रहे सत्यवादी राजा हरिशचंद्र के समस्त कष्ट इसी एकादशी का व्रत करने आैर भगवान विष्णु की पूजा करने से दूर हुए थे। कहते हैं कि अजा एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के बराबर शुभ फल प्राप्त होता है।
इन बातों का रखें ध्यान
अजा एकादशी का व्रत करने वालों को कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसा की सभी जानते हैं कि एकादशी के व्रत में चावल का प्रयोग आैर भोजन वर्जित होता है। इसके साथ ही अजा एकादशी से एक दिन पहले दशमी की रात्रि में मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए। इसके अलावा इस व्रत में चने, करोंदे, आैर पत्तेदार साग आदि के खाने पर भी प्रतिबंध होता है। इस दिन शहद का सेवन भी नहीं करना चाहिए। इन सारे वर्जित कार्यों को करने से अजा एकादशी का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
एेसे करें पूजा
अजा एकादशी का व्रत करने के प्रात: शीघ्र उठ कर पहले सारे घर की साफ सफाई करनी चाहिए और उसके बाद पूरे घर या फिर पूजा के स्थान पर तिल और मिट्टी का लेप करना चाहिए। इसके बाद स्नान आदि से शुद्घ होने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए लेपन से शुद्ध किए स्थान पर धान्य रखें आैर उस पर कुंभ या कलश स्थापित करें। उसको लाल रंग के वस्त्र से सजायें आैर उसकी पूजा करें। तत्पश्चात कुम्भ के ऊपर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करके व्रत का संकल्प लें आैर धूप, दीप व पुष्प से भगवान की पूजा करें।
अजा एकादशी की कथा
अजा एकादशी की कथा राजा हरिशचन्द्र से जुडी़ है। वे अत्यन्त वीर, प्रतापी और सत्यवादी थे, परंतु अपने पूर्व जन्मों के अपराध के कारण उन्हें अपार कष्ट भोगना पड़ा था। सत्य आैर वचन के प्रति निष्ठावान राजा हरिश्चंद्र ने राज पाठ दान कर दिया था तथा अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया था और स्वयं एक चाण्डाल के यहां नौकरी कर ली थी। उनकी अवस्था देख कर गौतम ऋषि ने राजा को अजा एकादशी के व्रत के विषय में बतायाजिसे उन्होंने विधिपूर्वक किया। इसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए साथ ही उन्हें अपना परिवार, राज्य समेत पुन: मिल गया। अन्त में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गए।