पितृपक्ष में शुभ कार्य पर लगे विराम
पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए लोगों द्वारा तर्पण देने का कार्य सोमवार से प्रारंभ हो गया है। यह सिलसिला 15 दिनों तक चलता रहेगा। वहीं इस पक्ष के चलते शुभ कार्य पर विराम लग गया है। पितृपक्ष के संबंध में पंडितों ने बताया कि 28 से 12 अक्टूबर
पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए लोगों द्वारा तर्पण देने का कार्य सोमवार से प्रारंभ हो गया है। यह सिलसिला 15 दिनों तक चलता रहेगा। वहीं इस पक्ष के चलते शुभ कार्य पर विराम लग गया है। पितृपक्ष के संबंध में पंडितों ने बताया कि 28 से 12 अक्टूबर तक तर्पण देकर पितरों को याद किया जाएगा। इस पक्ष में भगवान के यहां सभी द्वार खुले होते हैं जिनकी मृत्यु इस पर्व के चलते होता है वे सीधे स्वर्ग में जाने का अधिकार रखता है। इस कारण से पितृपक्ष में गुजरे हुए पूर्वजों को विशेष तर्पण दिया जाता है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले एवं उन्हें स्वर्ग प्राप्ति कर मोक्ष मिले।
पूरे 15 दिन तक तरोई पान, कुम्हड़ा पान में दाल, चावल रखकर नदी या तालाब में ठंडा करते हैं जिन्हें मछली ले जाकर खाती है इस पर भी पूर्वजों के आने का संकेत होता है। 15 दिन तक करेंगे तर्पण तर्पण करने वाले रामजस मरकाम, केवल राम साहू, अमोलक पटेल ने बताया कि पितृपक्ष पर्व वैसे तो अशुभ पर्व माना जाता है। इस कारण 15 दिन तक कोई दाढ़ी, मूंछ तथा कटिंग नहीं कराते हैं। क्योंकि यह पितृ तर्पण का बहुत बड़ा पर्व है। पूरे 15 दिन तक किसी न किसी के यहां पूर्वज किसी भी रूप में आकर रखे सामग्रियों का भोग करते हैं।
पर्व के चलते मातृ व पितृ तर्पण महत्वपूर्ण होता है। इसमें नवमीं, एकादशी सहित अन्य दिनों में पूर्वज आते हैं। शुभ कार्य पर लगा विराम पंडित केदारप्रसाद तिवारी ने बताया कि वर्ष में सूर्य की दो गतियां होती है उत्तरायण और दक्षिणायन। मकर की संक्रांति में सूर्य उत्तरायण होते हैं तथा कर्क की संक्रांति में दक्षिणायन। दक्षिणायन में अनेक शुभ कार्य वर्जित है। शुभ कार्य सूर्य के उत्तरायण होने पर सम्पन्न किए जाते हैं। इस सबका अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। पितृ पक्ष सूर्य की दक्षिणायन गति में आता है इसलिए लोग इस पक्ष को केवल पितरों के निमित्त छोड़ देते हैं। वे इस समय में अधिकांश शुभ कार्य नहीं करते। उन्होंने बताया कि शास्त्रों ने भी इसी उद्देश्य से इन दिनों को शुभ कार्य के लिए वर्जित कर रखा है। पितृ पक्ष वर्ष में 15 दिनों का पितृ पर्व है। इसमें भोजन कराना, दान देना, अपने पूर्वजों को स्मरण करना, देव पितरों के सानिध्य में रहना अनेक प्रकार के कार्य शुभ है।