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Vijaya Ekadashi Vrat 2019: कार्यों में मिलेगी सफलता और पापों का होगा नाश इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से

Vijaya Ekadashi Vrat 2019 2 मार्च को मनाए जाने वाले विजया एकादशी के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से मनचाहे वरदान के साथ ही कार्यों में सफलता भी मिलती है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 01 Mar 2019 11:39 AM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 11:39 AM (IST)
Vijaya Ekadashi Vrat 2019: कार्यों में मिलेगी सफलता और पापों का होगा नाश इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से
Vijaya Ekadashi Vrat 2019: कार्यों में मिलेगी सफलता और पापों का होगा नाश इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से

कल यानि 2 मार्च को विजया एकादशी व्रत मनाया जाता है। फागुन महीने में कृष्ण पक्ष को मनाई जाने वाली इस एकादशी को विजया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। विजया एकादशी को भगवान विष्णु की पूज़ा की जाती है और ऐसा माना जाता है कि सच्चे दिल से की गई पूजा को भगवान न सिर्फ स्वीकारते हैं, बल्कि जिंदगी के उतार-चढ़ाव और किसी भी तरह की विपरीत परिस्थतियों में कभी न परास्त होने का आशीर्वाद भी देते हैं।विजया एकादशी तिथि और मुहूर्त

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एकादशी तिथि आरंभ- 08.39 बजे (1 मार्च)

एकादशी तिथि समाप्त- 11.04 बजे (2 मार्च)

एकादशी व्रत- 2 मार्च 2019

पारन का समय- 6.48 से 9.06 तक (3 मार्च 2019)

पारन के दिन द्वादशी तिथि समाप्त- 13.45

विजया एकादशी व्रत एवं पूजन विधि

इस दिन भगवान श्री हरि की पूजा वंदन की जाती है। भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उनकी धूप, दीप, पुष्प, चंदन, फूल, तुलसी से पूजा करें। ऐसा करने से सारे दोषों का नाश होता है और मनचाहा वरदान प्राप्त होता है। पूजा में तुलसी के पत्ते जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। भगवान विष्णु की कथा पढ़े या अगर कोई अन्य पढ़ रहा है तो ध्यान से सुनें। रात में जागरण करते हुए हरि भजन करने से दुखों का नाश होता है और पुण्य फल भी मिलता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं व कलश दान करें। इसके बाद ही व्रत खोलें।

विजया एकादशी व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है द्वापर युग में धर्मराज युद्धिष्ठिर को फाल्गुन एकादशी के महत्व के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होने अपनी शंका भगवान श्री कृष्ण के सामने प्रकट की। भगवान श्री कृष्ण ने फाल्गुन एकादशी के महत्व व कथा के बारे में बताते हुए कहा कि हे कुंते कि सबसे पहले नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से फाल्गुन कृष्ण एकादशी व्रत की कथा व महत्व के बारे में जाना था, उनके बाद इसके बारे में जानने वाले तुम्हीं हो, बात त्रेता युग की है जब भगवान श्री राने म माता सीता के हरण के पश्चात रावण से युद्ध करने लिये सुग्रीव की सेना को साथ लेकर लंका की ओर प्रस्थान किया तो लंका से पहले विशाल समुद्र ने रास्ता रोक लिया। समुद्र में बहुत ही खतरनाक समुद्री जीव थे जो वानर सेना को हानि पंहुचा सकते थे। चूंकि श्री राम मानव रूप में थे इसलिये वह इस गुत्थी को उसी रूप में सुलझाना चाहते थे। उन्होंने लक्ष्मण से समुद्र पार करने का उपाय जानना चाहा तो लक्ष्मण ने कहा कि हे प्रभु वैसे तो आप सर्वज्ञ हैं फिर भी यदि आप जानना ही चाहते हैं तो मुझे भी स्वयं इसका कोई उपाय नहीं सुझ रहा लेकिन यहां से आधा योजन की दूरी पर वकदालभ्य मुनिवर निवास करते हैं, उनके पास इसका कुछ न कुछ उपाय हमें अवश्य मिल सकता है। फिर क्या था भगवान श्री राम उनके पास पंहुच गये। उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्या उनके सामने रखी। तब मुनि ने उन्हें बताया कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यदि आप समस्त सेना सहित उपवास रखें तो आप समुद्र पार करने में तो कामयाब होंगे ही साथ ही इस उपवास के प्रताप से आप लंका पर भी विजय प्राप्त करेंगें। समय आने पर मुनि वकदालभ्य द्वारा बतायी गई विधिनुसार भगवान श्री राम सहित पूरी सेना ने एकादशी का उपवास रखा और रामसेतु बनाकर समुद्र को पार कर रावण को प्रास्त किया।  


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