वट पूर्णिमा : ऐसे करें वट वृक्ष की पूजा, पूरी होगी मनोकामना
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत किया जाता है। यह पूजा वट सावित्री व्रत के 15 दिन बाद होती है। महिलायें इसे बड़ी धूमधाम से मनाती हैं।
बरगद में होता है सावित्री देवी का निवास
इस दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आईं थीं। जिसके बाद उन्हें सती सावित्री कहा जाने लगा। इस व्रत को करने से सभी कष्टों का नाष हो जाता है। वट का अर्थ होता है बरगद का पेंड़। इसमें लटकती जटाएं सावित्री देवी का रूप मानी जाती है। हिन्दु पुराण में बरगद के वृक्ष में ब्रम्हा विष्णु महेश का निवास माना गया है।
वट सावित्री की कथा
अश्वपति नाम का एक सच्चा ईमानदार राजा था। उसके शाही जीवन में सिर्फ एक कष्ट था कि उसके कोई संतान नहीं थी। जिसके लिये वो बहुत परेशान रहता था। एक ब्राम्हण ने उसे वट सावित्री का व्रत रखने के लिये कहा। राजा ने 18 वर्षो तक कठोर तप किया जिसके बाद देवी सावित्री प्रसन्न होकर प्रकट हुईं। उन्होंने राजा को एक बेटी होने का वरदान प्रदान किया। बेटी का नाम देवी सावित्री के नाम पर रखा गया। जब सावित्री शादी के योग्य हुई तो उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। सत्यवान की कुंडली में सिर्फ एक वर्ष का ही जीवन शेष था। सावित्री पति के साथ बरगद के पेड़ के नीचे बैठी थी। सावित्री की गोद में सिर रखकर सत्यवान लेटे हुये थे। तभी उनके प्राण लेने के लिये यमलोक से यमराज के दूत आये पर सावित्री ने अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दिये। तब यमराज खुद सत्यवान के प्राण लेने के लिये आते हैं। सावित्री के मना करने पर यमराज उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री वरदान में अपने सास-ससुर की सुख शांति मांगती है। यमराज उसे दे देते हैं पर सावित्री यमराज का पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज फिर से उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री अपने माता पिता की सुख समृद्धि मांगती है। यमराज तथास्तु बोल कर आगे बढ़ते हैं पर सावित्री फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज उसे आखिरी वरदान मांगने को कहते हैं तो सावित्री वरदान में एक पुत्र मांगती है। यमराज जब आगे बढ़ने लगते हैं तो सावित्री कहती हैं कि पति के बिना मैं कैसे पुत्र प्राप्ति कर सकती हूं। इसपर यमराज उसकी लगन, बुद्धिमत्ता देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और उसके पति के प्राण्ा वापस कर देते हैं।
ऐसे होती है वट पूर्णिमा की पूजा
वट सावित्री और वट पूर्णिमा की पूजा वट वृक्ष के नीचे होती है। एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं। जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाये जो हैं। सभी महिलायें वट सावित्री की कथा सुनती हैं। चने गुड् का प्रसाद दिया जाता है।