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इस सोमवार शिव के भैरव रूप की पूजा का है संयोग क्‍योंकि आज है कालाष्‍टमी

शिव पूजा के दिन ही पड़ रही है इस माह कालाष्‍टमी, भोले नाथ के भैरव स्‍वरूप की पूजा के इस दिन और सोमवार का संयोग है खास।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 07 May 2018 10:04 AM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 10:04 AM (IST)
इस सोमवार शिव के भैरव रूप की पूजा का है संयोग क्‍योंकि आज है कालाष्‍टमी
इस सोमवार शिव के भैरव रूप की पूजा का है संयोग क्‍योंकि आज है कालाष्‍टमी

शिव के भैरव रूप की पूजा

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हिंदी पंचांग के प्रत्‍येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्‍टमी का त्‍योहार मनाया जाता है। ये दिन शिव के कालभैरव स्‍वरूप की पूजा को समर्पित होता है। इस दिन को भैरवाष्टमी भ कहते हैं। वैसे आज के दिन माता दुर्गा की पूजा और व्रत का भी अत्‍यंत महत्‍व होता है। नारद पुराण में कहा गया है कि कालाष्टमी को भैरव और देवी दुर्गा दोनों की पूजा करने से पुण्‍य प्राप्‍त होता है। काली के उपासकों को भी आज अर्ध रात्रि के बाद उनकी पूजा पूरे विधि विधान से करनी चाहिए जैसे कि वे नवरात्रि में सप्तमी को कालरात्रि की पूजा करते हैं। कालाष्‍टमी की पूजा में शिव पार्वती कथा और जागरण का महत्‍व बताया गया है। इस दिन फलाहार के साथ व्रत किया जाता है और भैरव की सवारी कुत्‍ते को भोजन कराया जाता है। 

शिव के क्रोध से उपजे भैरव

यदि पौराणिक कथाओं पर विश्‍वास करें तो काल भैरव की उत्‍पत्‍ति भगवान शिव के क्रोध से हुइ है। कथाओं के अनुसार ब्रह्माजी और विष्णु जी के बीच विवाद हुआ कि ब्रह्मा विष्‍णु महेश में कौन श्रेष्‍ठ है। विवाद का का हल ढूंढने के लिए उन्‍होंने समस्‍त देवताओं और ऋषि मुनियों से अपना मत बताने को कहा। इन सभी ने एक स्‍वर से शिवजी को श्रेष्‍ठ बताया। ये बात ब्रह्मा जी को पसंद नहीं आई और वे नाराज हो कर शंकर जी का अपमान कर बैठे जिससे भोलेनाथ क्रोधित हो गए। इसी क्रोध से कालभैरव का जन्म हुआ, और उसके उत्‍पन्‍न होने के दिन को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता लगा।

इस खास मंत्र का करें जाप

इस दिन पूरे विधि विधान से काल भैरव की पूजा करने वाले के कष्ट दूर होते हैं और उसे रोगों से मुक्‍ति प्राप्‍त होती है। काल भैरव की कृपा पाने के लिए कालाष्‍टमी की पूजा में नीचे दिए मंत्र का जाप अवश्‍य करें। शिव पुराण के अनुसार आज के दिन इस मंत्र का जाप करना कल्‍याणकारी होता है। अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि! 


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