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कुबेर की पूजा से होती है धन की प्राप्ति

कुबेर की उपासना से माया यानी धन की प्राप्ति होती है। धनत्रयोदशी तथा दीपावली के दिन इनका खासतौर से पूजन किया जाता है। इसके अलावा फाल्गुन त्रयोदशी से साल भर हर माह शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर व्रत करने का विधान है। हिन्दू धर्म में अलग-अलग देवताओं की अराधना अलग-अलग उद्देश्यों

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2016 02:30 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2016 10:05 AM (IST)
कुबेर की पूजा से होती है धन की प्राप्ति

कुबेर की उपासना से माया यानी धन की प्राप्ति होती है। धनत्रयोदशी तथा दीपावली के दिन इनका खासतौर से पूजन किया जाता है। इसके अलावा फाल्गुन त्रयोदशी से साल भर हर माह शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर व्रत करने का विधान है। हिन्दू धर्म में अलग-अलग देवताओं की अराधना अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है। जैसे मां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा धन के लिए करते हैं। कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है। वे देवताओं के कोषाध्यक्ष कहे जाते हैं। इनकी कृपा से किसी को भी धन प्राप्ति के योग बन जाते हैं। कुबेर को प्रसन्न करने का सुप्रसिद्ध मंत्र इस प्रकार है-

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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये॥

धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का अमोघ मंत्र है। इस मंत्र का तीन माह तक रोज 108 बार जप करें। जप करते समय अपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्मी कौड़ी) रखें। तीन माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर इस कौड़ी को अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। कहते हैं कि ऐसा करने पर कुबेर देव की कृपा से आपका लॉकर कभी खाली नहीं होगा। हमेशा उसमें धन भरा रहेगा।

कुबेर ने जिन स्थानों पर तपस्या की थी, वे स्थान कुबेर तीर्थ के नाम से जाने जाते हैं। नर्मदा और कावेरी नदी के तट पर कुबेर ने तप किया था। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित भद्रकाली मंदिर के निकट सरस्वती नदी के तट पर कुबेर तीर्थ हैं। कहते हैं यहां कुबेर ने यज्ञ किए थे। महाभारत के अनुसार जिस समय पांडव वनवास के दौरान बदरिकाश्रम में रह रहे थे। तब एक दिन जब भीमसेन एकांत में बैठे थे, तब द्रौपदी ने उनसे कहा कि इस पर्वत पर अनेक राक्षस निवास करते हैं, यदि वे सब यह पर्वत छोड़कर भाग जाएं तो कैसा रहे। भीमसेन, द्रौपदी की बात समझ गए और अपने शस्त्र उठाकर गंधमादन पर्वत पर बेखटक आगे बढऩे लगे। पर्वत की चोटी पर जाकर वे कुबेर के महल को देखने लगे। तभी भीमसेन ने अपने शंख से भयानक ध्वनि की। शंख की ध्वनि सुन यक्ष और राक्षसों ने भीमसेन पर हमला कर दिया। भीमसेन ने भी अकेले ही उन सभी को पराजित कर दिया। वहीं कुबेर का मित्र मणिमान नाम का राक्षस रहता था। उसके और भीम के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। भीमसेन ने उसका भी वध कर दिया। युद्ध की आवाजें सुनकर युधिष्ठिर, नकुल व सहदेव भी भीमसेन के पास पहुंच गए। जब कुबेरजी को पता चला कि भीम ने उनके क्षेत्र में आकर उनके सेवकों को मारा है तो बहुत क्रोधित हो गए और अपने रथ पर सवार होकर उस ओर चल दिए। वहां पहुंचकर जब कुबेरजी ने युधिष्ठिर को देखा तो उनका क्रोध शांत हो गया और उन्होंने कहा कि यह राक्षस तो अपने काल से ही मरे हैं, भीमसेन तो सिर्फ निमित्त मात्र हैं। पांडवों ने वह रात कुबेरजी के महल में ही बिताई।


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