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Som Pradosh 2021 Vrat Katha: आज शिव पूजा के समय करें सोम प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण

Som Pradosh 2021 Vrat Katha हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। आज सोम प्रदोष व्रत है। आज शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा के दौरान सोम प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 07 Jun 2021 11:15 AM (IST)Updated: Mon, 07 Jun 2021 11:15 AM (IST)
Som Pradosh 2021 Vrat Katha: आज शिव पूजा के समय करें सोम प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण
Som Pradosh 2021 Vrat Katha: आज शिव पूजा के समय करें सोम प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण

Som Pradosh 2021 Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। जिस तरह प्रत्येक माह में दो एकादशी होती है, उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। प्रदोष व्रत मंगलकारी और शिव उपासना का व्रत माना जाता है। यह व्रत मास के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर रखा जाता है। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। हिन्दू धर्म में प्रदोष को शिव से जोड़ा गया है। दरअसल, इस व्रत से चंद्र का दोष दूर होता है। सोमवार के दिन सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन भौम प्रदोष और शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। आज सोम प्रदोष व्रत है। आज शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा के दौरान सोम प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में:

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सोम प्रदोष व्रत की कथा

प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। चंद्र देव को क्षय रोग था, जिसकी वजह से उन्हें बहुत कष्ट रहता था। भगवान शिव ने इस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन नया जीवन प्रदान किया, इसीलिए इस विशेष दिन को प्रदोष कहते हैं। हालांकि प्रत्येक प्रदोष की व्रत कथा अलग-अलग है। इसमें एक विधवा ब्राह्मणी और शांडिल्य ऋषि की कथा के माध्यम से इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलेगा।

स्कंद पुराण अनुसार, प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने छोटे से पुत्र को साथ लेकर भिक्षा मांगती थी। एक दिन संध्या के समय लौटते वक्त नदी के किनारे उसे एक सुंदर बालक दिखाई दिया। वह बालक विदर्भ का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर राज्य को हड़प लिया। रानी की भी अकाल मृत्यु हो चुकी थी। ब्राह्मणी ने बालक को अपना लिया तथा उसका पालन—पोषण अपने बच्चे की तरह ही किया।

समय बीतता गया एक दिन ब्राह्मणी की मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई, तो उन्होंने बच्चे के बारे में बताया कि वह विदर्भ के राजकुमार धर्मगुप्त हैं। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी। ब्राह्मणी के साथ दोनों बालको ने भी प्रदोष व्रत रखना शुरू कर दिया।

वन में घूमते हुइ दोनों बालको को गंधर्व कन्याएं दिखाई दीं। ब्राह्मण बालक वहां से घर आ गया, लेकिन राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगा। दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए। कन्या ने विवाह की बात पिता से करने के लिए राजकुमार को अपने घर बुलाया। दूसरे दिन राजकुमार को देखकर गंधर्व कन्या के पिता ने कहा कि यह तो विदर्भ के राजकुमार हैं। भगवान शिव के आशीर्वाद से गंधर्वराज ने दोनों की शादी करा दी। राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की मदद से अपने राज्य विदर्भ देश को प्राप्त कर लिया। ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का यह फल था।

स्कंद पुराण के अनुसार, प्रदोष व्रत कथा सुनने और पढ़ने वाले को सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती है।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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