Move to Jagran APP

Sawan Somvar 2020: श्रावण मास का दूसरा सोमवार आज, पढ़ें क्या है भोलेनाथ की व्रत कथा

Sawan Somvar 2020 आज सावन का दूसरा सोमवार है। सावन का पूरा महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। इस दौरान लोग व्रत करते हैं और शिवजी की पूजा करते हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sun, 12 Jul 2020 10:35 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 09:50 AM (IST)
Sawan Somvar 2020: श्रावण मास का दूसरा सोमवार आज, पढ़ें क्या है भोलेनाथ की व्रत कथा
Sawan Somvar 2020: श्रावण मास का दूसरा सोमवार आज, पढ़ें क्या है भोलेनाथ की व्रत कथा

Sawan Somvar 2020: आज सावन का दूसरा सोमवार है। सावन का पूरा महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। इस दौरान लोग व्रत करते हैं और शिवजी की पूजा करते हैं। कहते हैं अगर आप भगवान को पूरी श्रद्धा से याद किया जाए तो वो मनोकामना जरुर पूरी करते हैं। अगर आप भगवान शिव की विधिवत पूजा या व्रत कथा करते हैं तो आपकी भी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। इसी के चलते हम आपके लिए सोमवार की व्रत कथा लेकर आए हैं। तो चलिए पढ़ते हैं क्या है शिव जी की व्रत कथा।

loksabha election banner

सावन के सोमवार की व्रत कथा 

अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी था, जिसका व्यापार दूर-दूर तक फैला हुआ था। पूरे नगर में लोग व्यापारी का बहुत सम्मान करते थे। पैसा और सम्मान होने के बाद वो अंदर से बेहद दुखी रहता था। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था। वो दिन-रात यही सोचता रहता था कि उसके मरने के बाद उसका व्यापार कौन संभालेगा। पुत्र पाने के लिए उसनें भगवान शिव का व्रत कर उनकी पूजा का संकल्प लिया। इसके लिए हर शाम व्यापारी शिव मंदिर जाता था और भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाता था।

उस व्यापारी की भक्ति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा, "हे स्वामी, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। यह कई दिनों से आपका व्रत कर रहा है। आप इसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।" इस पर शिव जी ने हंसते हुए कहा, "हे पार्वती! संसार में सभी को उनके कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है। जैसा कर्म किया जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है।" भगवान शिव के कहने के बाद भी पार्वती जी नहीं मानीं। उन्होंने कहा, "नहीं स्वामी! आपको इसकी इच्छा पूरी करनी ही होगी। यह आपका सच्चा भक्त है। नियमित रूप से यह आपका व्रत हर सोमवार कर रहा है। भगवान शिव ने माता पार्वती की बात मान ली। उन्होंने कहा कि वो पार्वती जी के आग्रह पर व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देते हैं। लेकिन इसके पुत्र की आयु 16 वर्ष से ज्यादा नहीं होगी।

भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और पुत्र की अल्पआयु की बात भी बताई। व्यापारी इससे खुश तो हुआ लेकिन उसे पुत्र की अल्पआयु की चिंता सताने लगी। व्यापारी ने सोमवार का व्रत बंद नहीं किया। वो नियमित रूप से व्रत करता रहा। कुछ ही समय बाद उसके घर में पुत्र की किलकारी गूंजी। वो बेहद खुश हुई। इस खुशी में उसने बहुत धूम-धाम से समारोह मनाया। अल्पआयु की रहस्य पता होने के चलते उसे पुत्र की ज्यादा खुशी नहीं हुई। लेकिन यह बात घर में किसी और को नहीं पता थी। व्यापारी ने विद्वान ब्राह्मणों से पुत्र का नाम रखने को कहना तो उन्होंने उस पुत्र का नाम अमर रखा।

अमर के 12 वर्ष के होने के बाद व्यापारी ने उसे पढ़ने के लिए वाराणासी भेजने का फैसला किया। व्यापारी ने दीपचंद को बुलाया, वो अमर के मामा थे। व्यापारी ने दीपचंद से अमर को वाराणासी छोड़ आने को कहा। अमर अपने मामा के साथ पढ़ाई के लिए वाराणासी चला गया। रास्ते में अमर और दीपचंद एक जगह आराम के लिए रुके। वो जहां-जहां रुक रहे थे वहां-वहां वो ब्राह्मणों को भोजन कराते थे और यज्ञ करते थे। वाराणासी तक यात्रा काफी लंबी थी। इस बीच दोनों एक नगर पहुंचे। उस नगर के राजा की बेटी का विवाह हो रहा था। इसी के चलते नगरी को सजाया गया था। जो समय निश्चित किया गया था उसी समय बारात भी आ गई। लेकिन राजा की बेटी की शादी जिस वर से हो रही थी वो एक आंख से काना था। ऐसे में वर का पिता इस बात को लेकर काफी परेशान था। उसे लग रहा था कि अगर राजा को यह बात पता चली तो वह इस विवाह से इनकार कर देगा। इससे उसकी काफी बदनामी होगी।

अमर को देखकर वर के पिता के मन में एक चाल आई। उसने सोचा कि अगर वो इस लड़के की शादी राजकुमारी से करा देगा तो उसके बेटे के बारे में किसी को पता नहीं चलेगा। जब विवाह हो जाएगा तो वो अमर को धन देकर विदा कर देगा और राजकुमारी को अपने नगर ले आएगा। इसके लिए वर के पिता ने दीपचंद और अमर से बात की। उन्होंने लालच में आकर इस प्रस्ताव के लिए हां कह दिया। वर के पिता ने अमर को दूल्हे के कपड़े पहनाए और राजुकमारी चंद्रिका से उसकी शादी करा दी। राजा ने अपनी बेटी को खूब धन दिया। राजकुमारी को उसके पति के साथ विदा कर दिया गया।

हालांकि, अब अमर से यह सच छिपाया नहीं जा रहा था। इसलिए उसने राजुकमारी को ओढ़नी पर लिख दिया कि राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है और मैं पढ़ाई के लिए वाराणसी जा रहा हूं। तुम्हें जिसके साथ रहना पड़ेगा वह काना है। जैस ही राजकुमारी ने यह पढ़ा तो राजकुमारी ने उस काने लड़के के साथ जाने के मना कर दिया। राजकुमारी का बात सुनकर राजा ने उसे अपने महल में रख लिया। इसी बीच अमर की आयु 16 वर्ष हो गई। इसके लिए उसने एक यज्ञ किया। जैसे ही यज्ञ खत्म हुई उसने ब्राह्मणों को अन्न और वस्त्र दिए। साथ ही भोजन भी कराया। इसके बाद रात में अमर अपने कमरे में जाकर सो गया। जैसा कि शिव जी ने वरदान दिया था अमर के शयनावस्था में ही प्राण चले गए। सुबह उसके मामा को जैसे ही पता चला वो खूब रोने पीटने गला।

भगवान शिव और माता पार्वती ने अमर के मामा के रोने की आवाज सुनी जो वहीं से गुजर रहे ते। पार्वजी जी शिव जी को कहा कि मुझे इस व्यक्ति के रोने का स्वर नहीं सेहन हो रहा है। कृप्या इसका दुख दूर करें। पार्वती जी की बात सुनकर वो उस व्यक्ति के पास गए। वहां जाकर उन्होंने देखा कि यह तो व्यापारी का बेटा है। उन्होंने पार्वती जी से कहा कि ये तो उसी व्यापरी का बेटा है जिसमें मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु पूरी हो चुकी है।

लेकिन पार्वती जी से यह विलाप देखा नहीं गया और उन्होंने शिव जी से निवेदन किया कि वो इस लड़के को जीवित करें। लड़के के माता-पिता को जब इसकी मृत्यु का पता चलेगा तो वो रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। वह सच्चे दिल से आपका हर सोमवार को व्रत करता है। पार्वती जी के निवेदन पर शिव जी ने उस लड़के को जीवित कर दिया।

शिक्षा समाप्त कर अपने मामा के साथ नगर के लिए निकला। वापस आते समय भी दोनों उसी नगर पहुंचे जहां अमर का राजकुमारी चंद्रिका विवाह हुआ था। वहां पर अमर ने यज्ञ किया और जब वहां के राजा ने इस यज्ञ को होते देखा तो वह अमर को पहचान गया। नगर का राजा अमर और दीपचंद को अपने साथ ले गया। राज ने दोनों को कुछ दिन महल में रखा। उन्हें काफी धन और वस्त्र भी दिए। इसके बाद उन्होंने राजकुमारी को अमर के साथ विदा कर दिया। राजा ने अमर और राजकुमारी के साथ कुछ सैनिक भी भेजे। जैसे ही अमर और दीपचंद राजकुमारी को लेकर नगर पहुंचे तो दीपचंद ने उनके आने की खबर एक दूत के हाथ भिजवाई। व्यापारी अपने बेटे के जीवित होने की खबर सुनकर बेहद खुश हुआ।

व्यापारी और अपनी पत्नी ने खुद को भूखा-प्यासा रखकर एक कमरे में बंद किया हुआ था। उन्होंने सोचा था कि जैसे ही उन्हें उनके बेटे की मृत्यु की खबर मिलेगी वो अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी अपनी पत्नी के साथ नगर के द्वार पहुंचे और वहां अपनी पुत्रवधू को देखकर बेहद खुश हुए। उस रात शिवजी ने व्यापारी के सपने में आकर कहा कि वो उसके व्रत करने और व्रत कथा सुनने से बेहद खुश हैं। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने व्यापारी के पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। इसे व्यापारी बेहद खुश हुआ। तो इसी तरह सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.