मान्यता है कि इन दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं
पितरों की आराधना का पर्व पितृपक्ष सोमवार से शुरू हो जाएंगे। सुख-समृद्घि की कामना के साथ जलाशयों में उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाएगा। मान्यता है कि इन दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं। इस बार पित्र पक्ष 15 दिन के रहेंगे। पित्र पक्ष के दौरान
सागर। पितरों की आराधना का पर्व पितृपक्ष सोमवार से शुरू हो जाएंगे। सुख-समृद्घि की कामना के साथ जलाशयों में उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाएगा। मान्यता है कि इन दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं। इस बार पित्र पक्ष 15 दिन के रहेंगे। पित्र पक्ष के दौरान गाय, कौआ व कुत्तों को भोजन कराना चाहिए। नगर में चकराघाट, नदी, तालाब एवं घरों पर पितरों की शांति के लिए तर्पण होगा। श्राद्घ पक्ष 15 दिनों तक चलेगा। 12 अक्टूबर को पितृमोक्षनी अमावस्या के साथ ही पितृपक्ष का समापन हो जाएगा। पं. रामगोविंद शास्त्री के मुताबिक इस वर्ष एक तिथि का क्षय होगा। परमा और पूर्णिमा एक साथ होने के कारण इस बार पित्र पक्ष 15 दिन के रहेंगे। भागवत का पाठ करने से पितरों को विशेष शांति मिलती है। तर्पण सूर्योदय के समय करना चाहिए।
शास्त्रों के मुताबिक श्वान ग्रास, गौ ग्रास, काक ग्रास देने एवं ब्राह्मण भोज कराने से जीव को मुक्ति एवं शांति मिलती है। पित्र पक्ष के एक दिन पहले बाजार में कई दुकानें भी लगी हुई दिखाई दी। इस दौरान कोई नई चीज नहीं खरीदते हैं न ही कोई नए कार्य की शुरूआत करते है। इसलिए मकरोनिया नगर पालिका के नव निर्वाचित पार्षदों ने दो दिन पहले ही चार्ज ले लिया। ऐसे करें तर्पण पंडितों के मुताबिक तर्पण, योग्य ब्राह्मण के मार्गदर्शन में करना चाहिए। तालाब, नदी व अपने घर में व्यवस्था अनुसार जवा, तिल, कुशा, पवित्री, वस्त्र आदि सामग्री के द्वारा पितरों की शांति, ऋषियों एवं सूर्य को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है। इसमें ऋषि तर्पण, देव तर्पण एवं सूर्य अर्द्घ होता है। सबसे आखिर में वस्त्र के जल को निचोड़ने से सभी जीवों को शांति मिलती है। श्राद्घ कर्म पितरों की शांति, प्रसन्नता के निमित्त किए जाते हैं। तिथि के अनुसार करें श्राद्घ ज्योतिषाचार्य पं. शास्त्री के मुताबिक जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में श्राद्घ करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति संन्यासी का श्राद्घ करता है, तो वह द्वादशी के दिन करना चाहिए। कुत्ता, सर्प आदि के काटने से हुई अकाल मृत्यु या ब्रह्मघाती व्यक्ति का श्राद्घ चौदस तिथि में करना चाहिए। यदि किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो ऐसे लोग अमावस्या पर श्राद्घ कर सकते हैं।