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Lingashtakam Sawan 2021: सावन में करें लिंगाष्टकम् का पाठ, प्राप्त होगी शिव की अनन्य कृपा

Lingashtakam Sawan 2021 शिवलिंग की उपासना के लिए पुराण में लिंगाष्टकम् नामक स्तुति का वर्णन है। मान्यता है कि सावन के महीने में शिवलिंग पर जल की धार और बेल पत्र समर्पित करते हुए नियमित रूप से लिंगाष्टकम् का पाठ करना चाहिए।

By Jeetesh KumarEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 08:45 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 08:45 PM (IST)
Lingashtakam Sawan 2021: सावन में करें लिंगाष्टकम् का पाठ, प्राप्त होगी शिव की अनन्य कृपा
सावन में करें लिंगाष्टकम् का पाठ, प्राप्त होगी शिव की अनन्य कृपा

Lingashtakam Sawan 2021: शिव पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव सृष्टि में सबसे पहले एक आनादि अनंत लिंग के रूप में ही प्रकट हुए थे। ये शिव लिंग इतना विशाल था कि स्वयं ब्रह्मा और विष्णु भी इसके ओर छोर का पता लगा पाने में असमर्थ थे। मान्यता है कि इस अनंत रूपी शिव लिंग से ही प्रणव मंत्र का नाद हुआ। जिससे सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। इसलिए भगवान शिव का पूजन लिंग रूप में अनादि काल से हो रहा है। न केवल हिंदू धर्म बल्कि विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में लिंग उपासना के साक्ष्य मिले हैं जो कहीं न कहीं शिव लिंग पूजा से जुड़े हुए हैं।

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साकार स्वरूप में भगवान शिव शिवरात्रि के दिन प्रकट हुए हैं। इसी दिन शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। इसके पूर्व भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में की जाती थी। आज भी भगवान शिव के साकार रूप से अधिक प्रभावशाली पूजन शिवलिंग का माना जाता है। विशेष रूप से शिवलिंग की उपासना के लिए पुराण में लिंगाष्टकम् नामक स्तुति का वर्णन है। मान्यता है कि सावन के महीने में शिवलिंग पर जल की धार और बेल पत्र समर्पित करते हुए नियमित रूप से लिंगाष्टकम् का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से शिव जी की अनन्य कृपा की प्राप्ति होती है....

शिव लिंगाष्टकम् का पाठ

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।

जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।

रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।

सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥

कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।

दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।

सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥

देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।

दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।

अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥

सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।

परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 


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