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पितर को उत्तम लोक एवं श्राद्धकर्ता को यज्ञफल

आश्विन कृष्ण षष्ठी बुधवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का सप्तम दिवस है। उक्त तिथि को 16 वेदी नामक तीर्थ की वेदियों पर पिंडदान होता है। विष्णुपद मंदिर के समीप पूर्व दिशा में उक्त वेदियां स्तंभ के रूप में हैं। एवं धर्मशिला पर स्थित हैं। उक्त धर्मशिला पवित्रतम गयासुर के सिर पर स्थापित है। यह शिला मरीची ऋषि की पत्नी धर्मवती है जो पति के शाप से पत्थ

By Edited By: Published: Wed, 25 Sep 2013 05:53 AM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2013 06:03 AM (IST)
पितर को उत्तम लोक एवं श्राद्धकर्ता को यज्ञफल

गया। आश्विन कृष्ण षष्ठी बुधवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का सप्तम दिवस है। उक्त तिथि को 16 वेदी नामक तीर्थ की वेदियों पर पिंडदान होता है। विष्णुपद मंदिर के समीप पूर्व दिशा में उक्त वेदियां स्तंभ के रूप में हैं। एवं धर्मशिला पर स्थित हैं। उक्त धर्मशिला पवित्रतम गयासुर के सिर पर स्थापित है। यह शिला मरीची ऋषि की पत्नी धर्मवती है जो पति के शाप से पत्थर बन गई थी। उग्र तपस्या द्वारा धर्मव्रता ने विष्णु आदि देवताओं से वरदान प्राप्त किया था कि उक्त शिला धर्मशिला के नाम से विख्यात हो, यहां सभी देवता निवास करें, सभी तीर्थो से पवित्र हो तथा इस पर श्राद्ध करने वाले उत्तम लोक प्राप्त करें। आज सोलह वेदी की पांच वेदियों पर श्राद्ध होता है।

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कार्तिकेय पद, दक्षिणाग्नि पद एवं सूर्य पद पर श्राद्ध से क्रमश: शिवलोक, ब्रह्मालोक एवं सूर्यलोक को पितर प्राप्त करते हैं। गार्हपत्य पद एवं आहवानीय पद पर श्राद्ध से क्रमश: वाजपेय यज्ञ एवं अश्वमेघ यज्ञ का फल श्राद्धकर्ता को प्राप्त होता है।

श्राद्ध के बाद दर्शन एवं नमस्कार की वेदियों के पास जाकर दर्शन-पूजन का विधान है। सोलह वेदी के ईशान कोण में छोटे मंदिर में नरसिंह भगवान पूजनीय हैं जो पितरों का उद्धार करते हैं। उत्तर दिशा में पितृच्छा या महादेव के दर्शन से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। पश्चिम दिशा में पांच गणेश मूर्तियां दर्शनीय वेदी हैं। ये गणनाथ वेदी के नाम से जानी जाती है। उक्त सभी वेदियां 360 वेदियों में परिगणित होती हैं।

-[आचार्य लालभूषण मिश्र]

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