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पितर प्रत्यक्ष होकर आशीर्वाद दिए थे

आश्विन मास कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि मंगलवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का छठा दिन है। इस तिथि को विष्णुपद मंदिर में विष्णु के दाहिने चरण पर अवस्थित विष्णुवेदी, रुद्रपद वेदी एवं ब्रह्मपद वेदी पर पिंडदान होता है। विष्णुपद वेदी पर पिंडदान से विष्णुलोक, ब्रह्मापद वेदी पर पिंडदान से ब्रह्मालोक को तथा रुद्रपद वेदी पर पिंडदान से रुद्रलोक को पितर जाते

By Edited By: Published: Wed, 25 Sep 2013 05:44 AM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2013 05:50 AM (IST)
पितर प्रत्यक्ष होकर आशीर्वाद दिए थे

गया। आश्विन मास कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि मंगलवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का छठा दिन है। इस तिथि को विष्णुपद मंदिर में विष्णु के दाहिने चरण पर अवस्थित विष्णुवेदी, रुद्रपद वेदी एवं ब्रह्मपद वेदी पर पिंडदान होता है। विष्णुपद वेदी पर पिंडदान से विष्णुलोक, ब्रह्मापद वेदी पर पिंडदान से ब्रह्मालोक को तथा रुद्रपद वेदी पर पिंडदान से रुद्रलोक को पितर जाते हैं।

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विष्णुपद वेदी पर भीष्म पितामह द्वारा पिंडदान करने से उनके पिता शान्तनु विष्णुलोक को प्राप्त हुए थे। पिंडदान के समय शान्तनु ने प्रत्यक्ष होकर भीष्म पितामह को आशीर्वाद दिया था कि वे त्रिकालदर्शी हों तथा इच्छानुसार मृत्यु प्राप्त करें। रुद्रपद वेदी पर भगवान श्रीराम द्वारा पिंडदान करने से दशरथ रुद्रलोक को प्राप्त हुए थे। श्रीराम को प्रत्यक्ष होकर आशीवाद दिया था कि वे अयोध्यावासी सहित विष्णुलोक जाएं।

विष्णुपद मंदिर में आदिगदाधर विष्णु ने उत्तरमुख स्थित होकर अपनी आदि गदा से कंपित सिर वाले गयासुर को स्थिर किया था। अत: विष्णु चरण के दाहिने चरण का अंगूठा उत्तर दिशा में है और एड़ी दक्षिण दिशा में है। विष्णु चरण दक्षिण दिशा में दीवाल में महालक्ष्मी उत्तर मुख है। महालक्ष्मी दर्शनीय एवं प्रणम्य वेदी है। पश्चिम दीवाल में पूर्व मुख विश्वेदेव है। विश्वदेव दर्शनीय एवं प्रणम्य वेदी है। मंदिर से बाहर विष्णु के वाहन गरुड़ जी दक्षिण मुख है। मंदिर से उत्तर दिशा में गरुड़जी दर्शनीय एवं प्रणम्य हैं। मंदिर के दक्षिण तरफ जगन्नाथ माधव सुभद्रा एवं बलदेव का मंदिर है। उक्त सभी देवता पूर्व मुख हैं। इनके दर्शन नमस्कार किए जाते हैं। 360 वेदियों में अधिकाधिक वेदियां दर्शनीय वेदियां हैं। दर्शन नमस्कार से पितर मुक्त होते हैं। श्राद्धकर्ता को भी आशीर्वाद देते हैं।

-[आचार्य लालभूषण मिश्र]

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