पितृपक्ष: कंप्यूटर से आगे 'पंडा पोथी'
आइए, आपको मोक्षधाम गयाजी की तंग गलियों में ले चलते हैं। इन गलियों में कभी आपके पूर्वज आए थे। यहां पुराने मकानों में अलमारी में आज भी उनके दस्तखत सुरक्षित हैं। नई पीढ़ी अपने पूर्वज को नमन करने यहां आती है तो उनके उन दस्तखत को ढूंढ़ती है। यह सब तब हो रहा है जब कंप्यूटर का माउस क्लिक करते ही देश-दुनिया की पूरी जानकारी ि
गया। आइए, आपको मोक्षधाम गयाजी की तंग गलियों में ले चलते हैं। इन गलियों में कभी आपके पूर्वज आए थे। यहां पुराने मकानों में अलमारी में आज भी उनके दस्तखत सुरक्षित हैं। नई पीढ़ी अपने पूर्वज को नमन करने यहां आती है तो उनके उन दस्तखत को ढूंढ़ती है। यह सब तब हो रहा है जब कंप्यूटर का माउस क्लिक करते ही देश-दुनिया की पूरी जानकारी मिलती है।
कभी मिनटों तो कभी लगते घंटों
गयाजी में पिंडदान कर्मकांड करने आने वाले लोग सबसे पहले अपने पुरखों को इन पंडा पोथी में ढूंढ़ते हैं। यानी खुद को उस तीर्थ पुरोहित (गयापाल पंडा) या उनके वंशज के पास पाते हैं। जहां कभी उनके दादा- परदादा ने अपने पूर्वजों का गयाश्राद्ध किया था।
इस संतुष्टि के बाद श्रद्धालु तीर्थ पुरोहित को आगे के कर्मकांड के लिए प्रेरित करते हैं। अगर पोथी में उनके नाम या गांव-गिरांव का नाम दर्ज नहीं है तो वे फिर दूसरे की तलाश में लग जाते हैं। यह काम कभी घंटों तो कभी मिनटों में होता है। दरअसल, भीड़ में पुरखों के नाम-पते और दस्खती की खोज आसान नहीं है।
त्रिस्तरीय व्यवस्था
गयापाल पंडों के यहां खाता-बही और यह पोथी त्रिस्तरीय व्यवस्था के तहत सुरक्षित है। पहली पोथी इंडेक्स की होती है जिसमें जिले के बाद अक्षरमाला के क्रम में गांव का नाम होता है। इसमें सौ-दो सौ साल के अंदर उस गांव से आए लोगों का पूरा पता, व्यवसाय और गया आने की तिथि दर्ज है। दूसरी पोथी दस्खती बही में पुरखों का विवरण होता है। इसमें नंबर व पन्ना संख्या का जिक्र होता है। इसके आधार पर श्रद्धालु को मिनटों में बही में पुरखों के हस्ताक्षर व तिथि का दर्शन करा दिया जाता है।
और पुरखों के हस्ताक्षर के ये दर्शन यजमान और तीर्थपुरोहित के बीच कर्मकांड का एक पक्का सेतु बना देता है। तीसरी पोथी हाल मोकाम बही होती है। जिसमें गांव के रहने वाले लोग अब किस शहर में क्या कर रहे हैं? इसकी अद्यतन जानकारी दर्ज होती है। अगर गांव के हिसाब से पुरखे नहीं मिलते हैं तो हाल मोकाम द्वारा उन्हें ढूंढने का प्रयास होता है।
कंप्यूटर पर गयाजी
गयाजी में आने के बाद श्रद्धालु अपने तीर्थ पुरोहित के साथ पुरखों के संबंध को देखने के उपरांत ही आगे का कार्य संपन्न कराते हैं। अगर गयाजी में कंप्यूटरीकृत व्यवस्था की बात करें तो दो-तीन वर्षो में गयापाल पंडे के कई घरानों ने अपनी अलग-अलग बेवसाइट खोल रखी है। जिसमें गयाजी और पिंडदान की ढेर सारी जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं। इसका फायदा भी मेले के दौरान इन्हें मिला है।
कहते हैं गयापाल
पीतल किवाड़ वाले गयापाल पंडा महेश लाल गुप्त बताते हैं कि बेवसाइट के माध्यम से पिंडदान की जानकारी लेने के बाद सैकड़ों लोगों ने फोन के माध्यम से संपर्क किया। लेकिन, पुरखों की दस्खती और खाता-बही के कंप्यूटराइज्ड करने का सवाल है तो यह यजमानों की आस्था के साथ उनकी मानवीय संवेदना से जुड़ी है। यजमान ने अपने मन: मस्तिष्क में पूर्वजों के लिए श्रद्धा बना रखी है। वे पोथी पर दस्तखत देखकर उसे सिर से लगाते हैं।