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Papmochani Ekadashi Katha: आज पापमोचनी एकादशी को जरूर सुनें अप्सरा मंजुघोषा और मेधावी की कथा, व्रत का मिलेगा पूर्ण फल

Papmochani Ekadashi Katha पूजा के समय भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Wed, 18 Mar 2020 12:46 PM (IST)Updated: Thu, 19 Mar 2020 06:50 AM (IST)
Papmochani Ekadashi Katha: आज पापमोचनी एकादशी को जरूर सुनें अप्सरा मंजुघोषा और मेधावी की कथा, व्रत का मिलेगा पूर्ण फल
Papmochani Ekadashi Katha: आज पापमोचनी एकादशी को जरूर सुनें अप्सरा मंजुघोषा और मेधावी की कथा, व्रत का मिलेगा पूर्ण फल

Papmochani Ekadashi Katha: समस्त पापों का नाश करने वाली पापमोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होता है। इस वर्ष पापमोचनी एकादशी व्रत आज 19 मार्च दिन गुरुवार को है। इस दिन चतुर्भुत भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। वे व्यक्ति को अनजाने में किए गए समस्त पापों से मुक्त कर देते हैं। पूजा के समय भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। आप भी पूजा के समय पापमोचनी एकादशी व्रत का पाठ जरूर करें। आइए जानते हैं पापमोचनी एकादशी व्रत कथा के बारे में —

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पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने कुन्ती पुत्र अर्जुन को बताया कि एक समय राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से जानना चाहा कि व्यक्ति जो अनजाने में पाप कर देता है, वह उससे कैसे मुक्त हो सकता है? इस पर लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत की महत्ता के बारे में उनको विस्तार से बताया।

इस दौरान लोमश ऋषि ने राजा मान्धाता को एक पौराणिक कथा सुनाई। आइए उस कथा के बारे में पढ़ते हैं:

च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी चैत्ररथ नाम के सुन्दर वन में तपस्या कर रहे थे। एक दिन अप्सरा मंजुघोषा वहां से जा रही थी, तभी उसकी नजर मेधावी पर पड़ी और वह उन पर मोहित हो गई। इसके पश्चात उसने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करने लगी।

तभी कामदेव वहां से जा रहे थे, तब उन्होंने मंजुघोषा को देखा। वे मंजुघोषा की भावनाओं को समझ गए और उसकी मदद करने लगे। इसके परिणामस्वरूप मेधावी मंजुघोषा पर आकर्षित हो गए और दोनों काम क्रिया में मग्न हो गए। इस वजह से मेधावी देवों के देव महोदव की तपस्या करना ही भूल गए।

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काफी वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद मेधावी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वे भगवान शिव की आराधना से पूर्णत: विरक्त हो गए थे। फिर उन्होंने अप्सरा मंजुघोषा को इसका कारण माना और उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। मंजुघोषा दुखी हो गई, उसने मेधावी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी। इस पर उन्होंने मंजुघोषा को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया।

मेधावी के बताए अनुसार अप्सरा मंजुघोषा ने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा, जिसके प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और उसे पिशाच योनी से मुक्ति भी मिल गई। फिर वह स्वर्ग चली गई। वहीं, काम वासना के कारण मेधावी का तेज नष्ट हो गया था, उन्होंने भी अपने तेज की प्राप्ति के लिए चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा। इससे उनके भी पाप नष्ट हो गए और उनको भी अपना खोया तेज पुन: प्राप्त हो गया।


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