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Padmini Ekadashi 2020: आज है पद्मिनी एकादशी, जानें कब करें पूजा, पारण समय और महत्व

Padmini Ekadashi 2020 अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। पद्मिनी एकादशी को अधिकमास एकादशी भी कहा जाता है। पद्मिनी एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के बारे में बताया।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 07:24 AM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 06:12 AM (IST)
Padmini Ekadashi 2020: आज है पद्मिनी एकादशी, जानें कब करें पूजा, पारण समय और महत्व
फाइल फोटो: पद्मिनी एकादशी का व्रत और महत्व।

Padmini Ekadashi 2020: हिन्दी पंचांग के अनुसार, पद्मिनी एकादशी का व्रत अधिकमास या मलमास के समय में आता है। ऐसे में अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। पद्मिनी एकादशी को अधिकमास एकादशी भी कहा जाता है। इस वर्ष पद्मिनी एकादशी का व्रत आज 27 सितंबर दिन रविवार को है। सभी एकादशी के तरह पद्मिनी एकादशी में भी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। आइए जानते हैं कि इस वर्ष पद्मिनी एकादशी व्रत और पूजा का मुहूर्त क्या है, पारण का समय क्या है और इसका महत्व क्या है।

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पद्मिनी एकादशी का मुहूर्त

अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 26 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 29 मिनट पर हुआ, जो 27 सितंबर दिन रविवार को सुबह 7 बजकर 16 मिनट तक है। ऐसे में आपको पद्मिनी एकादशी का व्रत 27 सितंबर को रखना उचित है।

पद्मिनी एकादशी: पारण का समय

पद्मिनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद पारण करके व्रत को पूरा करना चाहिए। पद्मिनी एकादशी व्रत के पारण का समय 28 सितंबर दिन सोमवार को सुबह 06 बजकर 19 मिनट से सुबह 08 बजकर 28 मिनट के बीच है। आपको इसके मध्य पारण कर लेना चाहिए। द्वादशी तिथि के समापन का समय 08 बजकर 28 मिनट है। एकादशी का पारण द्वादशी तिथि के खत्म होने से पूर्व कर लेना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी का महत्व

भगवान श्रीकृष्‍ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि मलमास के समय में लोगों को अनेक पुण्यों को प्रदान करने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति कीर्ति प्राप्त करता है और मृत्यु के बाद बैकुंठ को जाता है। बैकुंठ तो मनुष्‍यों के लिए भी दुर्लभ है।


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