Move to Jagran APP

Navratri 2022 Argala Stotram: मां भगवती को सर्वाधिक प्रिय है अर्गला स्तोत्र का पाठ, यहां पढ़िए

Navratri 2022 Argala Stotram शास्त्रों में मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कई मंत्र एवं स्तोत्र का उल्लेख किया गया है। मान्यता है कि इनके शुद्ध उच्चारण से और नियमित पाठ से मां भगवती पस्रन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraPublished: Fri, 30 Sep 2022 04:16 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 04:16 PM (IST)
Navratri 2022 Argala Stotram: मां भगवती को सर्वाधिक प्रिय है अर्गला स्तोत्र का पाठ, यहां पढ़िए
Navratri 2022 नवरात्र में नितदिन करें अर्गला स्तोत्र का पाठ। जरूर होगा लाभ।

नई दिल्ली, Navratri 2022, Argala Stotram: देशभर में नवरात्र का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। मां दुर्गा को समर्पित यह महापर्व कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इन नौ देवियों की पूजा (Navratri 2022 Durga Puja) करने से जीवन में सुख-समृद्धि व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।

loksabha election banner

बता दें कि मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में कई स्तोत्र और मंत्रों का उल्लेख किया गया है। लेकिन अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को विशेष लाभ होता है। मान्यता यह भी है कि अर्गला स्तोत्र मां भगवती का सबसे प्रिय स्तोत्र है। नवरात्र में नितदिन इसका पाठ करने से व्यक्ति को विशेष लाभ होता है और उसके सभी कार्य सफल होते हैं। आइए पढ़ते हैं-

श्रीचण्डिकाध्यानम्

ॐ बन्धूककुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीम् ।

स्फुरच्चन्द्रकलारत्नमुकुटां मुण्डमालिनीम् ।।

त्रिनेत्रां रक्तवसनां पीनोन्नतघटस्तनीम् ।

पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात् ।।

दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानिताम् ।

अथ अर्गलास्तोत्रम् (Argala Stotram Lyrics)

ॐ नमश्वण्डिकायै

मार्कण्डेय उवाच

ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ।।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।।

मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रिलोक्यशुभदे नमः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंसुते परमेश्वरि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः ।

सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ।।

।। इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे अर्गलास्तोत्रं समाप्तम् ।।

डिसक्लेमर

इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.