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Nag Panchami 2019: नाग पंचमी को क्यों करते हैं नागों की पूजा? नागमाता कद्रू के शाप से जुड़ी है कथा

Nag Panchami 2019 श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागों की पूजा के संदर्भ में एक कथा हैं जिसमें नागों की पूजा के कारण का उल्लेख मिलता है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 10:52 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 09:37 AM (IST)
Nag Panchami 2019: नाग पंचमी को क्यों करते हैं नागों की पूजा? नागमाता कद्रू के शाप से जुड़ी है कथा
Nag Panchami 2019: नाग पंचमी को क्यों करते हैं नागों की पूजा? नागमाता कद्रू के शाप से जुड़ी है कथा

Nag Panchami 2019: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी इस वर्ष 5 अगस्त को नाग देवता की पूजा की जाएगी। देशभर में आज नाग पंचमी मनाई जा रही है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागों की पूजा के संदर्भ में एक कथा हैं, जिसमें नागों की पूजा के कारण का उल्लेख मिलता है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना जाता है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक है।

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देवों की सेवा में समर्पित हैं नाग

पुराणों में यक्ष, किन्नर और गन्धर्वों के वर्णन के साथ-साथ नागों का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शय्या की शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान शिव के अलंकरण में वासुकी की महत्वपूर्ण भूमिका है। योगसिद्धि के लिए जो कुण्डलिनी शक्ति जागृत की जाती है, उसको सर्पिणी कहा जाता है। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमश: प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक बनते हैं। इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है।

नाग देवता हैं पूज्य

नाग देवता भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार किये गये हैं। कश्मीर के जाने-माने संस्कृत कवि कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'राजतरंगिणी' में कश्मीर की सम्पूर्ण भूमि को नागों का अवदान माना है। वहाँ के प्रसिद्ध नगर अनन्तनाग का नामकरण इसका ऐतिहासिक प्रमाण है। देश के पर्वतीय प्रदेशों में नागपूजा बहुतायत से होती है। यहाँ नागदेवता अत्यन्त पूज्य माने जाते हैं। हमारे देश के प्रत्येक ग्राम- नगर में ग्राम देवता और लोक देवता के रूप में नाग देवताओं के पूजास्थल हैं। भारतीय संस्कृति में सायं-प्रात: भगवत्स्मरण के साथ अनन्त तथा वासुकि आदि पवित्र नागों का नामस्मरण भी किया जाता है, जिनमें नागविष और भय से रक्षा होती है तथा सर्वत्र विजय होती है-

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।

शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।

तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

नाग पंचमी की कथा

नाग पंचमी की कथा के श्रवण का बड़ा महत्व है। इस कथा के प्रवक्ता सुमन्तु मुनि थे तथा श्रोता पाण्डव वंश के राजा शतानीक थे। कथा इस प्रकार है-

एक बार देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मन्थन से चौदह रत्नों में उच्चै:श्रवा नामक अश्वरत्न प्राप्त किया था। यह अश्व अत्यन्त श्वेत वर्ण का था। उसे देखकर नागमाता कद्रू तथा विमाता विनता- दोनों में अश्व के रंग के सम्बन्ध में वाद-विवाद हुआ। कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्यामवर्ण के हैं। यदि उनका कथन असत्य सिद्ध हो जाए तो वह विनता की दासी बन जाएंगी अन्यथा विनता उनकी दासी बनेगी।

नागमाता ने नागों को दिया भस्म होने का शाप

कद्रू ने नागों को बाल के समान सूक्ष्म बनाकर अश्व के शरीर में प्रवेश होने का निर्देश दिया, किन्तु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की। इस पर क्रोधित होकर कद्रू ने नागों को शाप दिया कि पाण्डव वंश के राजा जनमेजय नागयज्ञ करेंगे, उस यज्ञ में तुम सब भस्म हो जाओगे।

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ब्रह्मा ने दिया शाप मुक्ति का वरदान

नागमाता के शाप से भयभीत नागों ने वासुकि के नेतृत्व में ब्रह्मा जी से शाप निवृत्ति का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने निर्देश दिया कि यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे। उनका पुत्र आस्तीकि ही तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया तथा इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का परिरक्षण किया था। अत: नाग पंचमी का यह व्रत ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। हमारे धर्मग्रन्थों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है।

— ज्योतिषाचार्य पं.गणेश प्रसाद मिश्र

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