ऐसे करें मिथुन संक्रांति पर पूजा
मिथुन संक्रांति पर्व 15 जून को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इसकी पूजा करने का क्या है तरीका।
कब पड़ती है मिथुन संक्रांति
एक साल में 12 संक्रांति होती हें। जिसमें सूर्य अलग-अलग राशि और नक्षत्र पर विराजमान होता है। संक्रांति में दान-दक्षिणा और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। ऐसी ही एक मिथुन संक्रांति है। यह संक्रांति इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इसके बाद से ही वर्षा ऋतु शुरु हो जाती है। कुछ लोग इसे रज संक्रांति के नाम से भी जानते हैं।
क्या है मनाने का तरीका :
मिथुन संक्रांति में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व चार दिन पहले ही शुरु हो जाता है, जिसे सजबजा दिन कहते हैं। घर की औरतें चार दिन तक पूजा की तैयारी करती हैं। इस पर्व में अविवाहित भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेत हैं। माना जाता है कि वे लोग अच्छे वर की तलाश में यह पर्व मनाती हैं। यह त्यौहार वर्षा ऋतु से जुड़ा हुआ है, इसलिए धरती भी बारिश आने की तैयारी करती है।
क्या-क्या करना पड़ता है :
शुरु के तीन दिन औरतें बिना पका हुआ खाना खाती हैं। नमक नहीं लेती, साथ ही तीन दिन तक चप्पल भी नहीं पहनती हैं। इस पर्व को मनाने के लिए काफी नियमों का पालन करना पड़ता है। इन तीन दिनों में औरतें न कुछ काट-छील सकती हैं, न ही धरती पर किसी तरह की खुदाई की जाती है। पहले दिन नहाया जाता है, जबकि दूसरे और तीसरे दिन नहाना वर्जित है। आखिर में चौथे दिन नहा-धोकर पूजा अर्चना की जाती है।
यह है पूजा-विधि :
इस दिन सिलबट्टे की भूदेवी के रूप में पूजा होती है। उन्हें दूध और पानी से स्नान कराया जाता है। इसके बाद चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाते हैं। पूजा के बाद पंडितों और गरीबों को दान करने की भी परंपरा है। संक्रांति के दिन घर के पूर्वजों को श्रद्धांजलि भी दी जाती है। इस दिन विशेष रूप से पोड़ा-पीठा नाम की मिठाई बनाई जाती है। यह गुड़, नारियल, चावल के आटे व घी से बनती है। इस दिन चावल नहीं खाया जाता है।