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उलझन को त्‍याग श्रद्धा से मनायें महाशिवरात्रि 2018, ये है पूजन विधि व शुभ मुहूर्त

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। कहते हैं कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन हुआ। आइये जाने इस महाव्रत के मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 12 Feb 2018 01:11 PM (IST)Updated: Tue, 13 Feb 2018 11:47 AM (IST)
उलझन को त्‍याग श्रद्धा से मनायें महाशिवरात्रि 2018, ये है पूजन विधि व शुभ मुहूर्त
उलझन को त्‍याग श्रद्धा से मनायें महाशिवरात्रि 2018, ये है पूजन विधि व शुभ मुहूर्त

तिथि पर विवाद  

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हालाकि इस वर्ष महाशिवरात्रि व्रत की तिथि को लेकर कुछ विवाद हो रहा है। कुछ पंडितगण मंगलवार को तो कुछ बुधवार को महाशिवरात्रि व्रत करने की बात कह रहे हैं। इस बीच पं. विजय त्रिपाठी विजय के अनुसार यह व्रत बुधवार को मनाया जाना ही उचित और शास्त्र सम्मत है। वे कहते हैं कि ‘ स्मृत्यन्तर’ के अनुसार ‘प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिश्चतुर्दशी। रात्रौ जागरणं यस्मात्तस्मात्तां समुपोषयेत।। अर्थात् शिवरात्रि में चतुर्दशी प्रदोषव्यापिनी ग्रहण करनी चाहिए। इसके साथ ही ‘कामिक’ में भी कहा गया है कि ‘आदित्यास्त समये काले अस्ति चेद्या चतुर्दशी। तद्रात्रिः शिवरात्रिः स्यात्सा भवेदुत्तमोत्तमा।। अर्थात् सूर्य के अस्त के समय में यदि चतुर्दशी हो तो उस रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहते हैं वह उत्तमोत्तम होती है।
 
व्रत का मुहूर्त
पंडित जी के अनुसार यहां ध्यान देने योग्य बात है कि मंगलवार को चतुर्दशी तिथि रात्रि 10 बजकर 35 मिनट से प्रारम्भ होगी जो कि बुधवार को रात्रि 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगी बुधवार को सूर्योदय काल से व्याप्त रहने से तथा प्रदोष काल में एवं महानिशीथ काल में चतुर्दशी पूर्ण व्याप्त होने से महाशिवरात्रि व्रत बुधवार को मनाया जाना धर्मशास्त्र सम्मत है। क्योकि मंगलवार को प्रदोष काल में चतुर्दशी का अभाव है। बुधवार को प्रदोष काल सायं 05 बजकर 51 मिनट से लेकर रात्रि 08 बजकर 24 मिनट तक रहेगा तथा महानिशीथ काल रात्रि 11 बजकर 48 मिनट से लेकर अर्धरात्रि 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इसलिए बुधवार महाशिवरात्रि व्रत मनाया जाना धर्मशास्त्र सम्मत है। रूद्राभिषेक के लिए भी यही समय दो समयखण्ड सर्वोत्तम हैं।
पूजन विधि
सबसे पहले महाशिवरात्रि की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजा सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें। अब स्वस्ति पाठ करें। इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें। अब आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं। इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं। अब भगवान को वस्त्र और जनेऊ चढाएं, फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं। अब विविध प्रकार के फल चढ़ा कर धूप-दीप जलाएं और शिव जी को नैवेद्य का भोग लगाएं। अंत में फल, पान-नारियल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर आरती करें।
 
प्रदोष का महत्व

ध्यान रहे कि शिव पूजन में प्रदोष काल का अतिशय महत्व है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि महान शिव भक्त रावण द्वारा रचित ‘शिव तांडव स्तोत्र’ में नियम एवं फलश्रुति की व्याख्या करते हुए लिखा है कि

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥
शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है, साथ ही भक्‍त रथ, गज और घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
 

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