Move to Jagran APP

Maharana Pratap Jayanti 2020: आज है महाराणा प्रताप जंयती, जानें-मेवाड़ के महान योद्धा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

Maharana Pratap Jayanti 2020 इनकी वीरता से भारत भूमि गौरवान्वित है। वह तत्कालीन समय में एकलौते ऐसे वीर थे जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे।

By Umanath SinghEdited By: Published: Sat, 09 May 2020 12:24 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 09:09 AM (IST)
Maharana Pratap Jayanti 2020: आज है महाराणा प्रताप जंयती, जानें-मेवाड़ के महान योद्धा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
Maharana Pratap Jayanti 2020: आज है महाराणा प्रताप जंयती, जानें-मेवाड़ के महान योद्धा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Maharana Pratap Jayanti 2020: देशभर में आज यानि 9 मई को महाराणा प्रताप जयंती मनाई जा रही है। इनका जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ में हुआ था। जबकि हिंदी पंचांग अनुसार, इनका जन्म ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे, जिनकी वीर गाथा अमर है। इनकी वीर-गाथा किस्से-कहानियों में सुनाई जाती है। इनकी वीरता से भारत भूमि गौरवान्वित है। वह तत्कालीन समय में एकलौते ऐसे वीर थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे।

loksabha election banner

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय

महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान राज्य के मेवाड़ के राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह था और माता का नाम जयवंता बाई था। जबकि इनकी पत्नी का नाम अजबदे  पुनवार था। इनके दो पुत्र थे, जिनका नाम अमर सिंह और भगवान दास था। महान योद्धा महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर सवारी करते थे, उसका नाम चेतक था जो कि महाराणा प्रताप की तरह ही योद्धा था। महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर योद्धा रहे। उन्होंने बाल्यकाल में ही युद्ध कौशल सीख ली थी। हालांकि, वीर और योद्धा होने के बावजूद वे धर्म परायण और मानवता के पुजारी थे। इन्होंने माता जयवंता बाई जी को ही अपना पहला गुरु माना था।

मुगलों का चित्तौड़ पर हमला 

राणा उदय सिंह की तीन रानियां थीं- जिनमें रानी धीर बाई उनके सबसे अधिक प्रिय थी। रानी धीर बाई चाहती थी कि उनका पुत्र जगमाल राणा ही राजा बने। साथ ही शक्ति सिंह और सागर सिंह भी राजगद्दी संभालना चाहते थे, लेकिन प्रजा और राणा उदय सिंह स्वयं महाराणा प्रताप को ही उत्तराधिकारी मानते थे। इसी गृह-क्लेश का फायदा उठाकर मुगलों ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजपूत राजाओं को हार का सामना करना पड़ा। कई राजाओं ने तो अकबर के सामने घुटने टेक दिए थे, जिससे मुगलों का मनोबल बढ़ गया। इसके बावजूद राणा उदय सिंह और प्रताप ने मुगलों से जमकर लड़ाई की और मुगलों की अधीनता को वीर गति पाने तक स्वीकार नहीं किया। हालांकि, घर में कलह और द्वेष के चलते राणा उदय सिंह और प्रताप चित्तौड़ का किला हार गए। इसके बाद महाराणा प्रताप प्रजा की भलाई के लिए चित्तौड़ को छोड़ देते हैं और बाहर से ही प्रजा को सूरक्षा प्रदान करते हैं।

हल्दी घाटी युद्ध

सन 1576 में अकबर की 8000 सैनिकों ने एक साथ युद्ध का शंखनाद किया, जिसका नेतृत्व राजा मान सिंह कर रहे थे। जबकि महाराणा प्रताप को अफगानी राजाओं का समर्थन प्राप्त था। ऐसा कहा जाता है कि हाकिम खान सुर अंतिम सांस तक प्रताप के लिए लड़े। हल्दी घाटी का युद्ध कई दिनों तक चला, लेकिन अंत में प्रताप की सेना को हार का सामना पड़ा। प्रताप की हार के बारे में कहा जाता है कि इस हार का कारण राज्य में अन्न की कमी रही। उस समय राजपूत महिलाओं ने जौहर कर लिया। जबकि सेना युद्ध में वीरगति को प्राप्त किया। 

29 जनवरी, 1597 को वीर गति प्राप्त हुई।

इस युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया था और 21 जून 1576 को नदी को पार करने के बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। इस युद्ध के बाद प्रताप जंगल में ही रहने लगे थे और इसी दौरान 29 जनवरी, 1597 को 57 साल की उम्र में उन्हें वीर गति प्राप्त हुई। हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की वीरता को देख स्वयं अकबर ने उनकी प्रशंसा की थी और उन्हें महान योद्धा बताया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.