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Kokila Purnima Vrat 2021: पुत्र, सौभाग्य और संपदा के लिए आज रखें कोकिला पूर्णिमा व्रत, जानें तिथि और महत्व

Kokila Purnima Vrat 2021 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कोकिला पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष कोकिला पूर्णिमा व्रत आज 23 जुलाई दिन शुक्रवार को है। इस दिन मां दुर्गा की कोयल स्वरुप में आराधना की जाती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Thu, 22 Jul 2021 03:25 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 06:15 AM (IST)
Kokila Purnima Vrat 2021: पुत्र, सौभाग्य और संपदा के लिए आज रखें कोकिला पूर्णिमा व्रत, जानें तिथि और महत्व
Kokila Purnima Vrat 2021: पुत्र, सौभाग्य और संपदा के लिए आज रखें कोकिला पूर्णिमा व्रत, जानें तिथि और महत्व

Kokila Purnima Vrat 2021: आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कोकिला पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष कोकिला पूर्णिमा व्रत आज 23 जुलाई दिन शुक्रवार को है। इस दिन मां दुर्गा की कोयल स्वरुप में आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोकिला पूर्णिमा व्रत के अलावा पूरे सावन माह में कोकिला व्रत रखा जाता है। कोकिला पूर्णिमा का व्रत करने से व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

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कोकिला पूर्णिमा 2021 तिथि

हिन्दी पंचांग के अनुसार, 23 जुलाई दिन शुक्रवार सुबह 10:43 बजे से आषाढ़ पूर्णिमा तिथि लग रही है। यह अगले दिन सुबह 08:06 बजे तक रहेगी। व्रत की पूर्णिमा 23 जुलाई दिन शुक्रवार को है।

कोकिला पूर्णिमा व्रत का महत्व

कोकिला पूर्णिमा का व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। मां दुर्गा की कृपा से व्यक्ति को संतान, सुख, संपदा, धन आदि सभी चीजों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सावन सोमवार व्रत का लाभ मिलता है। कहने का अर्थ है कि इस व्रत को करने से युवतियों को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। यदि दांपत्य जीवन में कोई समस्या आ रही हो, तो उसके निवारण में भी कोकिला पूर्णिमा व्रत रखने की सलाह दी जाती है। यह व्रत मुख्यत: दक्षिण भारत में रखा जाता है।

कोकिला पूर्णिमा: संक्षिप्त व्रत कथा

माता सती जब बिना निमंत्रण के अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में उपस्थित होती हैं और वहां उनका और उनके पति भगवान शिव का अपमान होता है, तो वे यज्ञ की अग्निकुंड में आत्मदाह कर शरीर का त्याग कर देती हैं। भगवान शिव उनके वियोग को सहन नहीं कर पाते हैं। उनकी बिना आज्ञा के दक्ष के यज्ञ में जाने तथा वहां शरीर त्याग करने पर भगवान शिव माता सती को हजार वर्षों तक कोकिला होने का श्राप देते हैं। माता सती कोयल रुप में रहते हुए हजार वर्षों तक भगवान शिव को पाने के लिए तप करती हैं। इसके परिणाम स्वरुप वह पार्वती रुप में लौटती हैं और भगवान शिव को पति स्वरुप में पाती हैं। इसके बाद से ही युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए कोकिला पूर्णिमा व्रत रखती हैं।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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