जानें, क्यों कांवड़िया सावन में भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाते हैं और क्या है धार्मिक महत्व
जब भगवान शिव विष धारण कर रहे थे तो विष की कुछ बूंदे धरा पर भी गिरीं जिन्हें सांप बिच्छू और अन्य विषधारी जीवों ने ग्रहण कर लिया।
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-उपासना की जाती है। इसके लिए हर सोमवार को भगवान शिव के निमित्त व्रत किया जाता है। इसके साथ ही सावन महीने में कांवड़ यात्रा का भी विधान है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं, जहां सावन के महीने में गंगजल से जलाभिषेक किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं, तब भगवान शिव धरा के पालनहार होते हैं। इसलिए सावन से लेकर कार्तिक महीने तक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है, जिसे सोलह सोमवार भी कहा जाता है। आइए, जानते हैं कि क्यों कांवरिया सावन के महीने में भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाते हैं-
भगवान शिव का गंगाजल से जलाभिषेक
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में जब दानवों का आतंक बढ़ा और दानवों ने तीनों लोक पर आधिपत्य जमा लिया, उस समय देवतागण और ऋषि मुनि भगवान श्रीहरि विष्णु के पास गए। जहां उन्होंने दानवों पर विजय पाने के लिए समुद्र मंथन करने की सलाह दी।
इसके पश्चात, देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर नाग वासुकी और मंदार पर्वत की मदद से क्षीर सागर में समुंद्र मंथन किया। इससे 14 रत्नों समेत अमृत और विष की प्राप्ति हुई। जब विष धारण करने की बात आई तो देवता और दानव सभी पीछे हट भगवान शिव से विष से मुक्ति दिलाने की याचना की।
उस समय भगवान शिव ने विष को धारण किया। जब भगवान शिव विष धारण कर रहे थे तो विष की कुछ बूंदे धरा पर भी गिरीं, जिन्हें सांप, बिच्छू और अन्य विषधारी जीवों ने ग्रहण कर लिया। इसके चलते वे सभी विषधारी हो गए। जबकि भगवान शिव ने समस्त विष को अपने ग्रीवा में धारण कर लिया।
उस समय भगवान शिव को अत्यंत पीड़ा। इस पीड़ा को बुझाने अथवा कम करने के लिए रावण और देवताओं ने गंगालज लाकर उन्हें पिलाया, जिससे विष की पीड़ा कम हुई। कालांतर से भगवान शिव की गंगाजल से जलाभिषेक किया जाता है। आधुनिक समय में कांवड़िया गंगलाजल लेकर कांवड़ यात्रा करते हैं और गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।