जानें, कब है कोकिला व्रत और क्या है इसकी कथा
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही शादी में आ रही बाधा दूर हो जाती है और योग्य वर मिलता है।
दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन कोकिला व्रत मनाया जाता है। यह व्रत सावन भर मनाया जाता है। इस व्रत में आदिशक्ति के स्वरूप कोयल की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही शादी में आ रही बाधा दूर हो जाती है और योग्य वर मिलता है। खासकर, अविवाहित लड़कियों को यह व्रत जरूर करना चाहिए। आइए, इस व्रत की कथा और महत्व को जानते हैं-
कोकिला व्रत की कथा
पौरणिक कथा के अनुसार, अनंतकाल में राजा दक्ष के घर आदिशक्ति का सती रूप में जन्म हुआ। इसके बाद उनका पालन पोषण उनके पिता के द्वारा किया गया, किंतु जब बात सती की शादी की आई तो राजा दक्ष के न चाहने के बावजूद माता सती ने भगवान शिव से शादी कर ली। इसके कुछ समय बाद एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ किया, जिसमें माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया।
जब माता सती को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें अनुमति नहीं दी। जब माता सती हठ करने लगी तो भगवान शिव ने उन्हें अनुमति दे दी।
तत्पश्चात, माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंची। जहां उनका कोई मान-सम्मान नहीं किया गया। साथ ही भगवान शिव के प्रति अपमान जनक शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया, जिससे माता सती अति कुंठित हुई। उस समय माता सती ने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी।
भगवान शिव को जब माता सती के सतीत्व का पता चला तो उन्होंने माता सती को शाप दिया कि आपने मेरी इच्छाओं के विरुद्ध जाकर आहुति दी। अतः आपको भी वियोग में रहना पड़ेगा। उस समय भगवान शिव ने उन्हें 10 हजार साल तक कोयल बनकर वन में भटकने का शाप दिया।
कालांतर में माता सती कोयल बनकर 10 हजार साल तक वन में भगवान शिव की आराधना की। इसके बाद उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। अतः इस व्रत का विशेष महत्व है।