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Papamochani Ekadashi 2019: इस दिन व्रत करने से मिलेगी अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति

रविवार 31 मार्च को पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखा जायेगा। मान्यता है कि इसे करने से अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिल जाती है।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 04:03 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 11:20 AM (IST)
Papamochani Ekadashi 2019: इस दिन व्रत करने से मिलेगी अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति
Papamochani Ekadashi 2019: इस दिन व्रत करने से मिलेगी अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति

पापों से मुक्ति

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हिंदू कलैंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने पाप नहीं हुआ हो। पाप एक प्रकार की ग़लती है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है, परंतु शास्त्रों के अनुसार पापमोचिनी एकादशी का व्रत रख कर पाप के दंड से बचा जा सकता हैं। पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पाप मोचिनी कहते हैं। जिसका अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली। एक कथा के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है, तब उन्होंने इस दिन की महत्ता वर्णित की थी। 

पापमोचिनी एकादशी कथा

राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने एक कहानी सुनाई कि एक समय में चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नज़र ऋषि पर पड़ी तो वह उनपर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गये, और काम के वश में होकर शिव की तपस्या का व्रत भूल गये। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके हैं। तब उस अप्सरा को तपस्या भंग करने का दोषी मान कर क्रोधित ऋषि ने उसको श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और मुक्ति के लिए विनती करने लगी। तब ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में लीन रहने के कारण ऋषि का तेज भी नष्ट हो गया था इस कारण उन्होंने भी इस एकादशी का व्रत किया। ऐसा करने से उनके पाप का नाश हुआ और अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी। अपना सुन्दर रूप प्राप्त करके वह स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी।

विष्णु जी की होती है पूजा 

इस व्रत के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रत का आरंभ दशमी तिथि से ही हो जाता है। उस दिन एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर भगवान श्री विष्णु की प्रार्थना करें। एकादशी के दिन प्रात काल स्नान करके व्रत का संकल्प करें। संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित विष्णु जी की पूजा करें। पूजा के बाद भगवान के समक्ष बैठकर व्रत की कथा का पाठ अथवा श्रवण करें। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है, अत: रात में निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें अंत में स्वयं भोजन करें। 


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