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Paush Putrada Ekadashi Vrat 2022: जानें, पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा और महत्व

Paush Putrada Ekadashi Vrat 2022 हिंदी पंचांग के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि 12 जनवरी को शाम में 04 बजकर 49 मिनट पर शुरू होकर 13 जनवरी को शाम में 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी।

By Umanath SinghEdited By: Published: Mon, 10 Jan 2022 06:22 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jan 2022 11:11 AM (IST)
Paush Putrada Ekadashi Vrat 2022: जानें, पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा और महत्व
Paush Putrada Ekadashi Vrat 2022: जानें, पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा और महत्व

Paush Putrada Ekadashi Vrat 2022: 13 जनवरी को पौष पत्रदा एकादशी व्रत है। यह हर वर्ष पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। अतः पुत्र कामना करने वाली महिलाओं को पौष एकादशी व्रत करना चाहिए। साथ ही पुत्र पर आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके लिए इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। आइए, पौष पुत्रदा एकादशी की कथा और महत्व जानते हैं-

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पूजा तिथि

हिंदी पंचांग के अनुसार, पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि 12 जनवरी को शाम में 04 बजकर 49 मिनट पर शुरू होकर 13 जनवरी को शाम में 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। व्रती 13 जनवरी को दिन के किसी समय भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक काल में भद्रावतीपुरी नगर में सुकेतुमान नामक राजा राज करता था। उसकी कोई संतान न थी। यह सोच राजा सुकेतुमान सदैव चिंतित रहता था। उनके मन में यह सवाल हमेशा रहता था कि मृत्यु पश्चात उन्हें मुखाग्नि कौन देगा और कौन उनके पितरों का तर्पण करेगा? एक दिन यह सोच राजा सुकेतुमान वन की ओर प्रस्थान कर गए। चिंता में मग्न राजा सुकेतुमान कुछ देर बाद घने जंगल में पहुंच गए। तेज धूप के चलते उन्हें घने जंगल में तेज प्यास लगी। तब राजा जल की तलाश में एक सरोवर के पास पहुंचे। उस सरोवर के पास ऋषियों के कई आश्रम थे और सभी ऋषि पूजा-पाठ कर रहे थे। उस वक्त राजा ने एक ऋषि से पूजा करने का औचित्य जानना चाहा, तो एक ऋषि ने कहा- आज पुत्रदा एकादशी है। अतः सभी भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा कर रहे हैं। इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। उस समय राजा ने पानी पीकर सर्वप्रथम प्यास बुझाई। इसके बाद व्रत करने का संकल्प लिया। कालांतर में राजा सुकेतुमान और उनकी अर्धांग्नी ने पुत्रदा एकादशी व्रत किया। एक वर्ष पश्चात राजा के घर नन्हें राजकुमार की किलकारी गुंजी।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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